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Utsav Aamar Jati, Anand Aamar Gotra (उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्ठPDF

220 Pages·2018·2.27 MB·French
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Preview Utsav Aamar Jati, Anand Aamar Gotra (उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्à¤

उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र प्रवचन-क्रम 1. जग-जग कहिे जगु भये ........................................................................................................2 2. डूबो................................................................................................................................ 25 3. प्राण के ओ दीप मेरे .......................................................................................................... 46 4. सरस राग रस गंध भरो ..................................................................................................... 70 5. मैं तसर्फ एक अवसर ह ं....................................................................................................... 92 6. आनंद स्वभाव है............................................................................................................. 113 7. संन्यास : परमात्मा का संदेश ........................................................................................... 136 8. मेरी आंखों में झांको ........................................................................................................ 159 9. वेणु लो, गूंजे धरा ........................................................................................................... 179 10. सावन आया अब के सजन ................................................................................................ 200 1 उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र पहला प्रवचन जग-जग कहि ेजुग भय े पहला प्रश्नः ओशो, नव-आश्रम के तनमाफण में इिनी देर क्यों हो रही है? हम आस लगाए बैठे हैं कक कब हम भी बुद्ध-ऊजाफ के अलौककक क्षेत्र में प्रवेश करें। और हम ही नहीं, हजारों आस लगाए बैठे हैं। अंधेरा बहुि है, प्रकाश चातहए। और प्रकाश के दुश्मन भी बहुि हैं। इससे भय भी लगिा है कक कहीं यह जीवन भी और जीवनों की भांति खाली का खाली न बीि जाए। नीलम, प्रकाश की आकांक्षा जग गई िो जीवन खाली नहीं बीि सकिा है। प्रकाश की आकांक्षा बीज है। और बीज है िो अंकुरण भी होगा। अपनी आकांक्षा को िीव्रिा दो, त्वरा दो। अपनी आकांक्षा को अभीप्सा बनाओ। आकांक्षा-अभीप्सा का भेद ठीक से समझ लो। आकांक्षा िो और बहुि आकांक्षाओं में एक आकांक्षा होिी है। अभीप्सा है सारी आकांक्षाओं का एक ही आकांक्षा बन जाना। जैसे ककरणें अलग-अलग तििर कर पड़ें िो आग पैदा नहीं होिी; िाप िो होगा, आग नहीं होगी। लेककन ककरणों को इकट्ठा कर तलया जाए और एक ही जगह संगृहीि ककरणें पड़ें िो िाप ही नहीं आग भी पैदा होगी। अभीप्सा आकांक्षाओं की तबखरी ककरणों का इकट्ठा हो जाना है। मेरे तबना भी िुम्हारा पहुंचना हो सकिा है। बुद्ध-क्षेत्र के तबना भी बुद्धत्व घट सकिा है। बुद्धत्व का घटना बुद्ध-क्षेत्र पर तनभफर नहीं है। बुद्ध-क्षेत्र बुद्धत्व के तलए कारण नहीं है, तनतमत्त मात्र है। सहारा तमलेगा, सहयोग तमलेगा। गुरु-परिाप साध की संगति! लेककन जो घटना है वस्िुिः वह िुम्हारे भीिर घटना है, बाहर नहीं। मेरा आश्रम िुम्हारे भीिर तनर्मफि होना है, िुम्हारे बाहर नहीं। मेरा मंकदर िुम्हें बनना है। बाहर के मंकदर बने िो ठीक, न बने िो ठीक; उन पर तनभफर न रहना। बाहर के मंकदरों का बहुि भरोसा न करना। उनके बनने में बाधाएं डाली जा सकिी हैं, हजार अड़चनें खड़ी की जा सकिी हैं--की जा रही हैं, की जाएंगी। वह सब स्वाभातवक है। वह सदा से होिा रहा है--तनयमानुसार है, परंपरागि है, नया उसमें कुि भी नहीं है। चचंिा का कोई कारण नहीं है। नव-आश्रम तनर्मफि होगा, लेककन तजिनी बाधाएं डाली जा सकिी हैं, डाली ही जाएंगी। डाली ही जानी चातहए भी। क्योंकक सत्य ऐसे ही आ जाए और असत्य कोई बाधा न डाले िो सत्य दो कौड़ी का होगा। सुबह ऐसे ही हो जाए, अंधेरी राि के तबना हो जाए, िो क्या खाक सुबह होगी! गुलाब तखलेगा िो कांटों में तखलेगा। बुद्ध- क्षेत्र का यह गुलाब भी बहुि कांटों में तखलेगा। िुम्हारी प्रीति समझ में आिी है, िुम्हारी प्रार्फना समझ में आिी है। मगर बुद्ध-क्षेत्र के तलए रुकना नहीं है, एक पल गंवाना नहीं है। होगा िो ठीक, नहीं होगा िो ठीक। मगर िुम्हें इस जीवन में जाग कर ही जाना है। जग-जग कहिे जगु -जगु भए! कब से जगाने वाले जगा रहे हैं! ककिने जगु बीि गए! जागो, जागो! बाहर के तनतमत्तों पर मि िोड़ो। यह भी एक तनतमत्त बन जाएगा कक क्या करें, आश्रम में प्रवेश नहीं तमल पा रहा है; तमल जािा प्रवेश िो आत्मा को उपलब्ध हो जािे। 2 नहीं; प्रवेश तमल जाएगा िो सुतवधा जरूर होगी, सुगमिा होगी, सीकियां चिनी आसान हो जाएंगी, ककसी के हार् का सहारा होगा। लेककन यह िो एक पहलू है। एक दूसरा पहलू भी है जो कभी भूल मि जाना। कभी-कभी ककसी के हार् का सहारा बाधा भी बन जािा है। क्योंकक हार् के सहारे तमल जािे हैं िो लोग समझिे हैं अपने पैरों पर खड़े होने की कोई जरूरि नहीं है। लोग बैसातखयों पर तनभफर हो जािे हैं। और जो बैसातखयों पर तनभफर है, तबना लंगड़ा हुए लंगड़ा हो जािा है। मैं िो िुम्हारी सारी बैसातखयां िीन लेना चाहिा हं। वही होगा नव-आश्रम में। िुम आओग े बैसातखयां लेकर या बैसातखयां लेने; लाओगे बैसातखयां, िीन ली जाएंगी, उनकी होली हो जाएगी। और जो िुम आए हो लेने वे िुम्हें कभी दी नहीं जाएंगी। मैं चाहिा हं िुम्हारे पैर िुम्हें ले जाएं परमात्मा िक। क्योंकक और कोई जान े का मार्ग नहीं, उपाय नहीं। बुद्ध ने कहा हैः बुद्ध िो केवल मागफ कदखा सकिे हैं, चलना िो िुम्हें होगा। कहावि है न हमारे पास--घोड़े को नदी िक ले जा सकिे हो, पानी कदखा सकिे हो, तपला नहीं सकिे। बुद्ध-क्षेत्र नदी िक ले जाएगा, पानी कदखा देगा; मगर पीना िो िुम्हें होगा, कंठ िो िुम्हारा प्यासा है! और तजसे पीना ह ैनीलम, वह आज ही पीए, अभी पीए, कल के तलए प्रिीक्षा न करे। नव-आश्रम तनर्मफि होगा, िब िक के तलए टालो मि। सब स्र्गन मंहगे पड़िे हैं। कल का भरोसा क्या है? आज ह,ै बस इिना कार्ी है। आज ही होना चातहए जो होना है, अभी होना चातहए। एक पल पर भी टाला िो कौन जाने पल आए न आए! इसतलए कहंगा कक टालो मि। मुझसे प्रीति लग गई िो मेरे क्षेत्र में प्रवेश हो गया। यह क्षेत्र बाहर की बाि नहीं ह,ै अंिरिम की है, अंिरात्मा की है। मुझसे बाहर दूर भी रहो िो कुि हजफ नहीं; भीिर मुझसे पास रहो। बाहर स े मेरे पास भी हुए और भीिर से पास न हो सके िो वैसा पास होना ककस काम आएगा? िूने पूिाः "नव-आश्रम के तनमाफण में इिनी देर क्यों हो रही है?" होनी ही चातहए। यह कोई िोटी-मोटी घटना नहीं है। यह कोई िोटा-मोटा आश्रम भी होने वाला नहीं है। तजस आश्रम के तलए हम बीज बो रहे हैं, वह इस पृथ्वी का सबसे बड़ा आश्रम होगा। दस हजार संन्यासी वहां आवास करेंगे। महि ऊजाफ का बवंडर उठाना है। पूरी पृथ्वी को जो गैररक कर दे, ऐसी गुलाल उड़ानी है। रंग दे सारे जगि को, ऐसी र्ाग खेलनी है। तनतिि ही र्ाग के दुश्मन हैं, गुलाल के दुश्मन हैं, रंगों के शत्रु हैं। उदास, गंभीर, शास्त्रज्ञानी, पंतडि- पुरोतहि, राजनेिा, उनकी लंबीशृंखला है। और मैं जो कह रहा हं वह बगावि है। मैं जो कह रहा हं वह सीधी बगावि है। मैं चजंदा हं, यह भी चमत्कार है नीलम! जैसे कोई सुकराि को जहर न तपलाए! जैसे कोई जीसस को सूली न चिाए! जैसे कोई मंसूर को मारे न! मैं हं, यह भी चमत्कार है! इस चमत्कार का लाभ उठा लो। इस बगावि में डुबकी लगा लो। इसे ककसी बहाने मि टालो। मन बड़े बहाने खोज लेिा है। मेरे नव-आश्रम का तवरोध हो रहा है, होगा, होिा रहेगा। नव-आश्रम कर्र भी तनर्मफि होगा। मगर मैं चाहिा हं कक िुम उस पर अपनी सारी आशाओं को मि रटका देना। िुम िो काम में लगी रहो, क्योंकक नव- आश्रम की ईंट कौन बनेगा? नव-आश्रम कोई पत्र्र, तमट्टी, गारे से नहीं बनने वाला है। िुमसे बनने वाला है! संन्यातसयों से बनने वाला है! नीलम, िुझे उसकी ईंट बनना है। िो िुम िो िैयार होओ। ईंटें िैयार हो जाएंगी िो आश्रम भी बनेगा। कौन रोक सका है? सत्य को रोकने की चेष्टा सदा की गई है, मगर कौन कब रोक सका है? 3 राजनेिा तवरोध डालेंगे, क्योंकक मैं एक ऐसी दुतनया देखना चाहिा हं जहां राजनीति न हो। मैं एक ऐसी दुतनया देखना चाहिा हं जहां शासन-िंत्र कम से कम हो। क्योंकक शासन-िंत्र तजिना ज्यादा हो उिनी गुलामी होिी है। शासन-िंत्र तजिना कम हो उिनी स्विंत्रिा होिी है। र्ोड़ा िो जरूरी रहेगा। मैं पूणफ अराजकवादी नहीं हं, क्योंकक पूणफ अराजकिा संभव नहीं है। पूणफ अराजकिा िो िभी संभव है जब सभी लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाएं। ऐसा िो कब होगा, कहना मुतश्कल; कभी होगा भी, यह भी कहना मुतश्कल। पूणफ अराजकिा िो िभी हो सकिी है जब बुद्धों का समूह हो। बुद्धुओं के समूह में शासन की जरूरि िो रहेगी। बुद्धुओं के कारण शासन की जरूरि है। िो जब िक बुद्धूपन है दुतनया में, शासन भी रहेगा ककसी न ककसी मात्रा में। मगर उसकी न्यूनिम मात्रा हो जानी चातहए। शासन का िंत्र ऐसी ककसी भी चीज का तवरोध करेगा जो शासन के िंत्र की जड़ें काटिा हो। राजनेिा मेरा तवरोध करेंगे ही। श्री मोरारजी देसाई का मुझसे तवरोध आकतस्मक नहीं है, अकारण नहीं है। ठीक होना चातहए वही है। जैसा होना चातहए वैसा ही है। क्योंकक उन्हें एक बाि सार् कदखाई पड़िी है कक अगर मेरी बाि सही है िो राजनेिा का अतस्ित्व ही गलि है। अगर उसको अपने अतस्ित्व को बचाना है िो मेरी बाि तजिने कम लोगों िक पहुंचे उिना अच्िा। रेतडयो पर मि जाने दो, टेलीतवजन पर मि जान े दो, अखबारों में मि िपने दो; लोगों को मेरे पास मि आन े दो; जो आ जाएं उनको इस िरह सिाओ, इिना परेशान करो, इिना हैरान करो कक वे दोबारा आने की तहम्मि और जुरफि न करें। यह सब हो रहा है। और मैं कर्र िुम्हें दोहरा दंू कक यह सब बड़े तनयमबद्ध रूप से हो रहा है। ऐसा नहीं है कक मैं इससे कुि चककि हं। न होिा ऐसा िो मैं चककि होिा, िो मैं हैरान होिा। एक बहुि प्यारे र्कीर र्े। मेरे पास कभी-कभी आकर रुकिे र्े। महात्मा भगवानदीन उनका नाम र्ा। जब सभा में कभी बोलिे र्े, अगर कोई िाली बजा दे िो वे बड़े नाराज हो जािे र्े। मैंने उनसे पूिा कक लोग िाली बजािे हैं िो खुश होना चातहए, आप नाराज हो जािे हैं! वे कहिे कक जब भी कोई िाली बजािा है िब मैं समझिा हं कक जरूर मैंने कोई गलि बाि कही होगी, नहीं िो लोगों की समझ में ही कैसे आिी! अगर सही बाि कहो िो लोग पत्र्र मारिे हैं। अगर गलि बाि कहो िो लोग माला पहनािे हैं। उनकी बाि मुझे जंची। बूिा ठीक कह रहा र्ा, उतचि कह रहा र्ा। ठीक बाि कहो और लोग पत्र्र न मारें, यह असंभव। क्योंकक ठीक बाि उनके पैरों के नीचे की जमीन खींच लेिी है। और मैंने ठीक के अतिररक्त और कुि नहीं कहना है, ऐसा िय ककया। समझौिे भी नहीं करने हैं। सत्य को इस ढंग से भी नहीं कहना है कक र्ोड़ा मीठा हो जाए। कड़वा है िो कड़वा। सत्य जैसा है वैसा ही कहना है। न समझौिे, न लीपा-पोिी, न ढांकना, न मुखौटे। िो करठनाई िो होगी। राजनेिा की करठनाई है। कर्र नौकरशाही है इस देश में। शायद दुतनया में ऐसी नौकरशाही कहीं भी नहीं। लालर्ीिाशाही है इस देश में। ऐसी लालर्ीिाशाही भी दुतनया में कहीं नहीं। हमारे देश में कुि चीजें िो बड़ी गौरव की हैं-- नौकरशाही, लालर्ीिाशाही! जो काम घतड़यों में हो जाएं वे वर्षों में नहीं हो सकिे। बस र्ाइलें घूमिी ही रहिी हैं। कोई अंि ही नहीं आिा। सत्य तप्रया ने एक कहानी मेरे पास भेजी। शेरचसंह पुतलस में नौकरी करिा र्ा। एक बार पुतलस के सबसे बड़े आई.जी. साहब ने चसंह का तशकार खेलने की इच्िा प्रकट की। शेरचसंह ने सारी व्यवस्र्ा कर दी। मचान बंधवा कदया, एक पेड़ से बकरे को बांध कदया। आई.जी., डी.आई.जी., एस.पी., आई.जी. की पत्नी और उनकी बेबी, सभी मचान पर बैठ गए। शाम का समय र्ा, शेरचसंह वहां टाचफ लेकर खड़ा हो गया। उसको बकरे के गले 4 की घंटी बजिे ही टाचफ की रोशनी र्ेंकनी र्ी, िाकक आई.जी. साहब चसंह का तशकार कर सकें। कार्ी देर हो गई और चसंह नहीं आया िो बेबी ने अपनी मम्मी से पूिा, मम्मी, चसंह कब आएगा? मम्मी ने आई.जी. साहब से पूिा, चसंह कब आएगा? आई.जी. ने डी.आई.जी. से, डी. आई.जी. ने एस.पी. से, एस.पी. ने शेरचसंह से पूिा कक चसंह कब आएगा? और सब एक ही मचान पर बैठे हैं। मगर सरकारी ढंग होिा है एक काम करने का! बेचारे शेरचसंह की जबे में िो चसंह र्ा नहीं। कर्र भी शेरचसंह ने एस.पी. साहब से कहा कक सर, चसंह आिा ही होगा, जब साहब आ गए िो चसंह भी आएगा ही। अरे सरकार, सरकारी हुक्म को कौन टाल सकिा है! सब पास-पास ही बैठे हैं। शेरचसंह की बाि सुन कर एस.पी. ने डी.आई.जी. से, डी.आई.जी. ने आई.जी. से कहा कक सर, चसंह आिा ही होगा। साहब आएं और चसंह न आए, ऐसा कहीं हो सकिा है! सरकारी प्रतिष्ठा का सवाल है। आई.जी. ने अपनी पत्नी से और पत्नी ने बेबी से कहा, चसंह आिा ही होगा, चचंिा न कर। जहां िेरे तपिाजी मौजूद हैं वहां ककस चीज की कमी? कर्र बेबी िो र्क कर सो गई। करीब राि को बारह बजे चसंह आया। उसकी दहाड़ से शेरचसंह, एस.पी., डी.आई.जी., आई.जी., आई.जी. की पत्नी और बेबी, सभी का जीवन-जल वस्त्रों में ही तनकल कर बह गया। शेरचसंह ने टाचफ की रोशनी र्ेंकी, आई.जी. साहब ने ककसी िरह गोली चलाई। परंिु गोली बकरे को लगी। सरकारी काम! कोई िीर तनशाने पर कभी लगिा नहीं। और लगे भी क्या, जब जीवन-जल ही तनकल गया िो अब शतक्त भी कहां रही! ककसी िरह कंपिे हुए हार्, लेककन अपनी प्रतिष्ठा भी बचानी पड़े, सब सरकारी आकर्सर मौजूद हैं, िो गोली ककसी िरह चलाई। आियफ िो यह है कक बकरा भी कैसे मर गया! बकरे को भी पिा होिा कक गोली सरकारी है, नहीं मरिा। आई.जी. साहब ने डी.आई.जी. से पूिा, तशकार कैसा रहा? डी.आई.जी. ने एस.पी. से पूिा, एस.पी. ने शेरचसंह से पूिा। शेरचसंह पेशोपस में पड़ा कक क्या जवाब दे! तशकार िो कुि हुआ ही नहीं। कर्र भी सोच कर उसने एस.पी. साहब से कहा, सर, तशकार अंतिम सांस ले रहा है। नौकर-चाकर भी होतशयार हो जािे हैं। चमचे! उसने चसंह की बाि ही िोड़ दी। उसने कहा, तशकार अंतिम सांसें ल े रहा है। बकरा अंतिम सांसें ले रहा र्ा। एस.पी. ने डी.आई.जी. से कहा, सर, तशकार अंतिम सांस ले रहा है। डी.आई.जी. साहब ने आई.जी. साहब से कहा, सर, तशकार अंतिम सांस ले रहा है। आई.जी. साहब ने अपनी पत्नी से कहा, डार्लिंग, तशकार अंतिम सांस ले रहा है। पत्नी ने बेबी से कहा, तबरटया, तशकार अंतिम सांस ले रहा है। बड़े साहब प्रसन्न हुए। डी.आई.जी. की प्रसन्निा का क्या कहना! उन्होंने शेरचसंह की िरक्की कर दी। तशकार बकरे का और िरक्की शेरचसंह की! और र्ाइलों का ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जाने का लुत्र् देखा आपने! और मजा यह कक सब अंधे वहीं मौजूद र्े। और चसंह िो दहाड़ मार कर कभी का जा चुका र्ा। हां, बकरा जरूर दम िोड़ रहा र्ा। िो एक िो श्री मोरारजी देसाई का दबाव, भारी दबाव, कक मेरा कोई काम हो न सके! कर्र सरकारी िंत्र--बड़ा िंत्र! तजसमें चीजें सरकिी ही रहिी हैं, सरकिी ही रहिी हैं। तजसमें ककसी चीज का कभी कोई अंि आिा मालूम नहीं होिा। िो देर िो लग रही है। मगर देर ककिनी ही हो, यह बुद्ध-ऊजाफ का क्षेत्र तनर्मफि होगा-- तनर्मफि हो रहा है; क्योंकक िुम तनर्मफि हो रहे हो। मुझे उनकी कर्क्र है नहीं। िुम तनर्मफि हो रहे हो। मेरी आशा िुमसे है। िुम हो, िो शेर्ष सब हो जाएगा। लेककन िुम टालना मि; िुम प्रिीक्षा समय की मि करना। एक-एक पल बहुमूल्यवान है। िूने पूिा नीलमः "हम आस लगाए बैठे हैं कक कब हम भी बुद्ध-ऊजाफ के अलौककक क्षेत्र में प्रवेश करेंगे।" प्रवेश हो गया। जो संन्यस्ि हुआ, वह प्रतवष्ट हो गया। प्रवेश िो प्रीति में प्रवेश है। 5 "और हम ही नहीं, हजारों आस लगाए बैठे हैं।" मुझे पिा है। रोज न मालूम ककिने पत्र आिे हैं कक कब हम भी सतम्मतलि हो सकिे हैं! उनके पत्र िक नहीं पहुंचें, इसकी व्यवस्र्ा की जािी है। कदल्ली से पत्र चलिा है, पूना पहुंचिे-पहुंचिे डेि महीने लग जािे हैं! कुि-कुि पत्र िो िह-िह महीने में पहुंचिे ह!ैं और जो नहीं पहुंचिे, उनका िो हमें पिा ही नहीं चलिा। क्योंकक जब िह महीने में पहुंचिे हैं, िो कुि िो पहुंचिे ही नहीं; या पहुंचेंगे िह साल में! हर पत्र खोला जािा है; कोई पत्र तबना खुला नहीं आिा। हर पत्र को तजिनी देर-दार की जा सके, उिनी देर-दार की जािी है। हर पत्र की जांच-पड़िाल होिी है। श्री जयप्रकाश नारायण ने जो महाक्रांति की है, उससे एक बड़ा अदभुि लोकिंत्र तनर्मफि हुआ है! यह लोकिंत्र है, जहां लोगों के तनजी पत्र भी तनजी नहीं हैं! र्ोन टेप ककए जािे हैं। अमरीका जैसे देश में र्ोन टेप करने और इस िरह के उपद्रव करने के कारण तनक्सन को राष्ट्रपति पद िोड़ना पड़ा। यहां यह सब रोज हो रहा है। यहां यह सब तनयमानुसार हो रहा है। यहां ककसी के कानों पर जंू नहीं रेंगिी। देर िो तजिनी वे कर सकिे हैं, करेंगे; मगर उनकी देर के बावजूद भी घटना घटने वाली है। घटना इसतलए घटने वाली है कक देर है, मगर अंधेर नहीं है। सत्य को अटका सकिे हो, मगर तमटा नहीं सकिे। जीसस को ही मार कर िुम क्या मार पाए! सुकराि को जहर देकर िुमने अपने को जहर दे तलया। सुकराि जब मर रहा र्ा, िो उसको जहर देने वाले एक आदमी ने पूिा कक सुकराि, मरिे समय िुम्हारे मन को क्या हो रहा है? िुम्हारा बहुमूल्य जीवन नष्ट हो रहा है! सुकराि ने कहा, भूल यह बाि, िोड़ यह बाि। मेरे कारण िुम सब का नाम भी सकदयों िक याद ककया जाएगा। मेरे कारण! चूंकक िुमने मुझे जहर कदया र्ा, इतिहास में िुम्हारे नामों का उल्लेख रहेगा। अन्यर्ा िुम्हारे नामों का कोई उल्लेख भी होने वाला नहीं र्ा। वह आदमी िो चपु हो गया होगा। सुकराि जैसे लोग जब जवाब देिे हैं िो मुंह बंद हो जािे हैं। सुकराि के एक तशष्य ने पूिा कक अंतिम एक प्रश्न कक जब आप मर जाएंगे िो हम आपको गड़ाएं? जलाएं? कौन सी तवतध करें? सुकराि ने कहा, सुनो, यह भी सुनो! वे दुश्मन हैं, जो मुझे मार रहे हैं; और वे सोचिे हैं कक मेरे तमत्र हैं, जो मुझे गड़ाएंगे! सुकराि ने कहा, न िो मारने वाले मुझे मार पाएंगे और न गड़ाने वाले मुझे गड़ा पाएंगे। मैं रहंगा। यह मेरी आवाज गूंजिी ही रहेगी। और जब भी कोई सत्य को खोजेगा, उसे राह कदखािी रहेगी। और जब भी कोई अंधेरे म ें टटोलेगा, उसके तलए रोशनी बन जाएगी। और जब भी कोई सच में प्यासा होगा, िो उसके कंठ में अमृि की बूंद बन जाएगी। नहीं, नव-आश्रम रुकेगा नहीं। र्ोड़ी देर-अबेर। पर िुम उसके कारण स्र्तगि नहीं करना। िुम्हारा श्रम जारी रहे; िुम्हारा ध्यान जारी रहे; िुम्हारी प्रार्फना जारी रहे। िुम्हारी सारी प्रार्फनाओं के पररणाम में ही िो नव-आश्रम तनर्मफि होगा। िुम्हारी आशा के दीये जगिे रहें; क्योंकक िुम्हारे दीयों से ही िो वहां दीपावली होगी। और िुम अपने हृदय को रंगे चलो, रंगे चलो; क्योंकक िुम्हारे रंगों का ही िो मुझे उपयोग करना है। गुलाल कैसे उड़ाऊंगा? उत्सव कैसे होगा? िूने यह भी पूिा कक "अंधेरा बहुि है, प्रकाश चातहए।" अंधेरा ककिना ही हो, चचंिा न करो। अंधेरे का कोई अतस्ित्व ही नहीं होिा। अंधेरा कम और ज्यादा र्ोड़े ही होिा है; पुराना-नया र्ोड़े ही होिा है। हजार साल पुराना अंधेरा भी, अभी दीया जलाओ और तमट जाएगा। 6 और घड़ी भर पुराना अंधेरा भी, अभी दीया जलाओ और तमट जाएगा। और अंधेरा अमावस की राि का हो िो तमट जाएगा। और अंधेरा साधारण हो िो तमट जाएगा। अंधेरे का कोई बल नहीं होिा। अंधेरा कदखाई बहुि पड़िा है, मगर बहुि तनबफल है, बहुि नपुंसक है। ज्योति बड़ी िोटी होिी है, लेककन बड़ी शतक्तशाली है। क्योंकक ज्योति परमात्मा का अंश है; ज्योति में परमात्मा तिपा है। अंधेरा िो तसर्फ नकार है, अभाव है। अंधेरा है नहीं। इसीतलए िो अंधेरे के सार् िुम सीधा कुि करना चाहो िो नहीं कर सकिे। न िो अंधेरा ला सकिे हो, न हटा सकिे हो। दीया जला लो, अंधेरा चला गया। दीया बुझा दो, अंधेरा आ गया। सच िो यह है कहना कक अंधेरा आ गया, चला गया--ठीक नहीं; भार्षा की भूल है। अंधेरा न िो है, न आ सकिा, न जा सकिा। जब रोशनी नहीं होिी िो उसके अभाव का नाम अंधेरा है। जब रोशनी होिी है िो उसके भाव का नाम अंधेरे का न होना है। अंधेरा ककिना ही हो नीलम, और ककिना ही पुराना हो, कुि भेद नहीं पड़िा। जो दीया हम जला रहे हैं, जो रोशनी हम जला रहे हैं, वह इस अंधेरे को िोड़ देगी; िोड़ ही देगी। बस रोशनी जलने की बाि है। इसतलए अंधेरे की चचंिा न लो। रोशनी के तलए ईंधन बनो। इस प्रकाश के तलए िुम्हारा स्नेह चातहए। स्नेह के दो अर्फ होिे हैंःः एक िो प्रेम और एक िेल। दोनों अर्ों में िुम्हारा स्नेह चातहए--प्रेम के अर्ों में और िेल के अर्ों में--िाकक यह मशाल जले। अंधेरे की तबल्कुल चचंिा न लो। अंधेरे का क्या भय! सारी चचंिा, सारी जीवन-ऊजाफ प्रकाश के बनाने में तनयोतजि कर देनी है। और प्रकाश िुम्हारे भीिर है, कहीं बाहर से लाना नहीं है। तसर्फ तिपा पड़ा है, उघाड़ना है। तसर्फ दबा पड़ा है, र्ोड़ा कूड़ा-ककफट हटाना है। तमट्टी में हीरा खो गया है, जरा िलाशना है। और िूने कहाः "प्रकाश के दुश्मन भी बहुि हैं!" सदा से हैं। कोई नयी बाि नहीं। मगर क्या कर पाए प्रकाश के दुश्मन? प्रकाश के दुश्मन खुद दुख पािे हैं- -और क्या कर पािे हैं! तजन्होंने सुकराि को जहर कदया, िुम सोचिे हो सुकराि को दुखी कर पाए? नहीं, असंभव! खुद ही दुखी हुए, खुद ही पिात्ताप से भरे, खुद ही पीतड़ि हुए। सुकराि को सूली की सजा देने के बाद न्यायाधीश सोचिे र्े कक सुकराि क्षमा मांग लेगा। क्षमा मांग लेगा िो हम क्षमा कर देंगे। क्योंकक यह आदमी िो प्यारा र्ा; चाहे ककिना ही बगाविी हो, इस आदमी की गररमा िो र्ी। असल में सुकराि तजस कदन बुझ जाएगा, उस कदन एर्ेंस का दीया भी बुझ जाएगा--यह भी उन्हें पिा र्ा। सुकराि की मौि के बाद एर्ेंस कर्र कभी ऊंचाइयां नहीं पा सका। आज क्या है एर्ेंस की हैतसयि? आज एर्ेंस की कोई हैतसयि नहीं है। इन ढाई हजार सालों में सुकराि के बाद एर्ेंस ने कर्र कभी गौरव नहीं पाया; कभी कर्र स्वणफ-तशखर नहीं चिा एर्ेंस पर। और सुकराि के समय में एर्ेंस तवश्व की बुतद्धमत्ता की राजधानी र्ी। तवश्व की श्रेष्ठिम प्रतिभा का प्रागट्य वहां हुआ र्ा। एर्ेंस साधारण नगर नहीं र्ा, जब सुकराि चजंदा र्ा। सुकराि की ज्योति से ज्योतिमफय र्ा, जगमग र्ा। जानिे िो वे लोग भी र्े जो सुकराि को सजा दे रहे र्े। अपने स्वार्ों के कारण सजा दे रहे र्े। मारना चाहिे भी नहीं र्े; तसर्फ सुकराि सत्य बोलना बंद कर दे, इिना चाहिे र्े। सोचा र्ा उन्होंने, अपेक्षा रखी र्ी, कक मौि सामने देख कर सुकराि क्षमा मांग लेगा। लेककन सुकराि ने िो क्षमा मांगी नहीं। िो बड़े हैरान हुए। िो उन्होंने खुद ही कहा कक हम दो शिें और रखिे हैं। एक--कक अगर िुम एर्ेंस िोड़ कर चले जाओ िो जहर देने से हम अपने को रोक लेंगे। हम िुम्हें नहीं मारेंगे। कर्र एर्ेंस लौट कर मि आना। अगर यह िुम न कर सको... । 7 सुकराि ने कहा, यह मैं न कर सकूंगा। क्योंकक एर्ेंस के इस बगीचे को मैंने लगाया। यहां मैंने सैकड़ों लोगों के प्राणों में प्राण र्ूंके हैं। यहां मैंन े न मालूम ककिने लोगों की बंद आंखों को खोला है। एर्ेंस को िोड़ कर मैं न जा सकूंगा। अब इस बुिापे में कर्र से काम शुरू न कर सकूंगा। मौि िो आिी ही होगी, िो यहीं आ जाए। एर्ेंस म ें जीया, एर्ेंस में जागा, एर्ेंस में ही मरूं गा--अपने तप्रयजनों के बीच। अब ककसी परदेश में अब कर्र जाकर क ख ग से शुरू करूं , यह मुझसे न हो सकेगा। और आतखर में यह वहां होना है जो यहां हो रहा है। जब एर्ेंस जैसे सुसंस्कृि नगर में ऐसा हो रहा है िो एर्ेंस को िोड़ कर कहां जाऊं ? जहां जाऊंगा, वहां िो और जल्दी हो जाएगा। यहां कम से कम यह िो भाग्य रहेगा कक सुसंस्कृि, सभ्य, समझदार लोगों के द्वारा मारा गया र्ा! कम से कम यह िो सौभाग्य रहेगा! जंगली लोगों के हार्ों से मारे जान े से यह बेहिर है। एर्ेंस मैं नहीं िोडूंगा, िुम जहर दे दो। उन्होंने कहा, दूसरी शिफ यह है कक िुम एर्ेंस में रहो, कोई कर्क्र नहीं, मि िोड़ो; मगर सत्य बोलना बंद कर दो। सुकराि हंसा। उसने कहा, यह िो और भी असंभव है। यह िो ऐसे है, जैसे कोई पतक्षयों से कहे गीि न गाओ, कक कोई र्ूलों से कहे सुगंध न उड़ाओ, कक कोई झरनों से कहे कक नाद न करो। यह िो ऐसे है जैसे कोई सूरज स े कहे रोशनी मि दो। यह नहीं हो सकिा। मैं हं िो सत्य बोला जाएगा। मैं जो बोलूंगा वही सत्य होगा। अगर म ैं चपु भी रहा िो मेरी चुप्पी भी सत्य का ही उदघोर्ष करेगी। नहीं, यह नहीं हो सकेगा। यह िो मेरा धंधा है। ठीक "धंधे" शब्द का प्रयोग ककया है सुकराि ने। व्यंग्य में ककया होगा। मरिे वक्त भी इस िरह के लोग हंस सकिे हैं। सुकराि ने कहा, यह िो मेरा धंधा है, मेरा प्रोर्ेशन। सत्य बोलना मेरा धंधा है। यह िो मेरी दुकान। यह िो मैं जब िक जी रहा हं, जब िक श्वास आिी-जािी रहेगी, िब िक मैं बोलिा ही रहंगा। सुकराि को र्ांसी जहर तपला कर देनी ही पड़ी। मगर पििाए बहुि लोग, क्योंकक उसके बाद एर्ेंस की गररमा तमट गई। उसके बाद रोज-रोज एर्ेंस का पिन होिा चला गया। जीसस को सूली लगी। तजस आदमी ने, जुदास ने, जीसस को दुश्मनों के हार् में बेचा र्ा, िुम्हें मालूम है उसने खुद भी दूसरे कदन सूली लगा ली! यह कहानी बहुि कम लोगों को पिा है, क्योंकक ईसाई यह कहानी कहिे नहीं। यह कहनी चातहए, इसके तबना जीसस की कहानी अधूरी है। जीसस को िो सूली लगाई गई, जुदास ने दूसरे कदन अपने हार् से जाकर झाड़ से लटक कर सूली लगा ली। इिना पििाया। क्योंकक जीसस के जािे ही उस े कदखाई पड़ाः जेरुसलम अंधेरा हो गया। जेरुसलम का उत्सव खो गया। जेरुसलम पर एक उदासी िा गई। एक राि उिर आई, जो कर्र टूटी नहीं, जो अभी भी नहीं टूटी! जब िक कोई दूसरा जीसस पैदा न हो, जेरुसलम की राि टूट भी नहीं सकिी। दो हजार साल बीि गए, राि का अंि नहीं है, प्रभाि का कोई पिा नहीं है। प्रकाश के दुश्मन हैं जरूर, मगर प्रकाश के दुश्मन क्या कर पािे हैं? पीि े पििािे हैं। और प्रकाश के दुश्मन भला एक प्रकातशि दीये को बुझा देिे हों, लेककन उस प्रकातशि दीये की ज्योति को, जो तिरोतहि हो जािी ह ै आकाश में, सदा के तलए शाश्वि भी कर देिे हैं। शायद जीसस को लोग भूल भी गए होिे अगर सूली न लगी होिी। शायद सुकराि को लोग भूल भी गए होिे अगर जहर न कदया गया होिा। लेककन िाप लग गई सुकराि पर जहर देने से। जीसस मनुष्य-जाति के अंिरंग हो गए, प्राणों के प्राण हो गए। 8 िो अंधेरे के पक्षपािी, प्रकाश के दुश्मन, प्रकाश की कोई हातन नहीं कर पािे, कभी नहीं कर पािे। सत्य की कोई हातन होिी ही नहीं। सत्यमेव जयिे! सत्य िो जीििा ही है। हां, िोटी-मोटी लड़ाइयां भला हार जाए, मगर आतखरी लड़ाई में िो जीििा ही है। और िोटी-मोटी लड़ाइयों का कोई तहसाब नहीं है। कभी-कभी िो जीिने के तलए भी दो कदम पीिे हटना पड़िा है। कभी-कभी िो जीिने के तलए प्रिीक्षा करनी पड़िी है। कभी- कभी िो जीिने के तलए हार का ढोंग रचना पड़िा है। लेककन अंतिम तवजय सदा ही प्रकाश की है, सत्य की है। और िू कहिी है कक इससे लगिा है, भय लगिा है कक यह जीवन भी और जीवनों की िरह खाली न बीि जाए! नहीं बीिेगा। िू चचंिा िोड़। यह जीवन खाली नहीं बीिेगा। जो मुझसे जुड़े हैं वे भर कर ही जाएंगे, क्योंकक मैं अपने भीिर जो अनुभव कर रहा हं, िुम्हारे भीिर उंडेलने को ित्पर हं। और तजन्होंने भी अपनी गागरें मेरे सामने रख दी हैं वे खाली नहीं जाने वाले हैं। खाली वे ही जाएंगे तजन्होंने गागरें ही नहीं रखीं; या रखी ह ैं िो उलटी रखी हैं; या अपनी गागरों को पीठ के पीिे तिपाए बैठे हैं। सुन भी रहे हैं और नहीं सुन रहे हैं। देख भी रहे हैं और नहीं देख रहे हैं। मेरे भीिर जो उमगा है, मेरे भीिर जो स्वर बजा है, वह िुम्हारे भीिर भी स्वर बजाने में कुशल है। वह िुम्हारे भीिर के भी िार िेड़ेगा। वह िुम्हें कदखाऊंगा जो साधारणिः देखा नहीं जािा। और वह िुम्हें सुनाई पड़ेगा जो साधारणिः सुना नहीं जािा। वह आकाश की वीणा बजेगी। नीलम, अपने आंचल को र्ैलाओ! अपनी झोली पसारो! और बुद्ध-क्षेत्र िो तनर्मफि हो ही गया है। अभी अदृश्य है, उसको दृश्य करना है, बस इिनी बाि है। आज पृथ्वी पर एक लाख संन्यासी हैं। उनमें से दस हजार संन्यासी ककसी भी क्षण आन े को िैयार हैं सब िोड़-िाड़ कर। सारे कष्ट यहां आकर संन्यासी झेल रहे हैं। और मैंने अगर कुि उनके कष्टों के संबंध में कहा और पूना नगर की असंस्कृि दशा के संबंध में कुि कहा, िो बड़ी बेचैनी पूना में र्ैल गई। बड़े लेख तलखे गए। एक लेखक ने तलखा कक पूना चौदह लाख की आबादी का नगर है। हो सकिा है चार प्रतिशि लोग लुच्चे- लर्ंगे हों, संन्यातसयों को परेशान कर रहे हों, तवशेर्षकर संन्यातसतनयों को परेशान कर रहे हों; लेककन इस कारण पूरे नगर की चनंदा नहीं की जा सकिी। उन लेखक का नाम है राम बंसल। म ैं हैरान हुआ। मुझे गतणि बहुि नहीं आिा, लेककन इिना गतणि िो आिा ह ै कक राम बंसल की बाि की व्यर्फिा को तसद्ध कर सकूं। अगर चौदह लाख की आबादी है िो चार प्रतिशि ककिने लोग होिे हैं? िप्पन हजार लोग होिे हैं चार प्रतिशि। और यहां तवदेशी संन्यातसतनयां ज्यादा से ज्यादा एक हजार। एक-एक संन्यातसनी के पीिे िप्पन-िप्पन गुंडे पड़े हों, और मैं आलोचना न करूं ? जरा सोचो िो कक िुम्हारी पत्नी को बस्िी में िप्पन गुंडों स े मुकाबला करना पड़े, िो जहां जाएगी वहीं गुंडा तमल जाएगा। और माना कक ये चार प्रतिशि बुरे लोग हैं, मगर जो भले लोग हैं वे नपुंसक हैं और तनतष्क्रय हैं। अगर चार गुंडे एक स्त्री पर हमला करिे हैं िो सज्जन मुंह र्ेर कर तनकल जािे हैं। वे तियानबे प्रतिशि जो लोग बचिे हैं वे ककस काम के हैं? वे िो इन गुंडों से खुद ही डरे हुए हैं। लेककन बड़ी हैरानी हो गई उनको कक पूना जैसी सुसंस्कृि नगरी... कभी रही होगी, कभी जरूर रही होगी, िभी िो पूना नाम तमला। पूना नाम बना है पुण्य से, पुण्य शब्द से। कभी पुण्य नगरी रही होगी। दतक्षण की काशी है पूना। मगर असली काशी की हालि इिनी खराब हो गई है कक नकली काशी की हालि का क्या तहसाब रखना! असली काशी ही डूब गई िो नकली कातशयों का क्या है! 9 और लेखकों ने नाम तगना कदए कक यहां लोकमान्य तिलक जैसे महापुरुर्ष हुए! मुझे भी पिा है। और महात्मा नार्ूराम गोडसे, उनके संबंध में भी कुि सोचोगे कक नहीं? महात्मा नार्ूराम गोडसे एक अकेला कार्ी है सौ लोकमान्य तिलक को पोंि देने के तलए। अड़चनें होंगी, समाज से अड़चनें होंगी, राज्य से अड़चनें होंगी, राजनीतिज्ञों से अड़चनें होंगी। इन सारी अड़चनों को झेल कर भी हजारों लोग आने को उत्सुक हैं। वे आकर रहेंगे। संन्यातसयों का यह गैररक नगर बस कर रहेगा। र्ोड़ी देर हो सकिी है; मगर अंधेर न कभी हुआ है, न हो सकिा है। मगर िुम िैयार होने लगो, क्योंकक सभी को प्रवेश न तमल सकेगा। उन्हीं को प्रवेश तमल सकेगा जो िैयार हो गए हैं। इसतलए इसकी चचंिा मि करो कक ककिनी देर लगिी है नये कम्यून के बनने में। चचंिा इसकी करो कक नया कम्यून बने, उसके पहले िुम िैयार होओ। वहां िो मैं उन्हीं को चाहिा हं जो अपने अहंकार को तबल्कुल ही शून्य करके प्रवेश करें, क्योंकक वहां कुि अनूठे प्रयोग होने हैं जो सकदयों से नहीं हुए हैं। वहां कुि अनूठी गहराइयों में ले जाना है जहां आदमी ने जाना सकदयों से बंद कर कदया है। िुम्हें िुम्हारे अचेिन में उिारना है और िुम्हारे समतष्टगि अचेिन में भी उिारना है। िुम्हें िुम्हारे अतिचेिन में भी ले जाना है और िुम्हें सावफभौम जागतिक चेिन में भी ले जाना है। िुम िो बीच में हो। न िुम्हें गहराइयों का पिा है, न िुम्हें ऊंचाइयों का पिा है। मैं िुम्हें ले चलूंगा प्रशांि महासागर की गहराइयों में भी और गौरीशंकर के तशखरों पर भी। और ये दोनों यात्राएं सार्-सार् करनी हैं। क्योंकक जो तजिना गहरा जािा है उिना ऊंचा जाने में समर्फ हो जािा है और जो तजिना ऊंचा जािा है उिना गहरा जाने म ें समर्फ हो जािा है। ऊंचाई और गहराई एक ही आयाम है, एक ही आयाम का तवस्िार है। नीलम, िैयारी करो! अपने को तमटाने की िैयारी करो! िाकक िुम जब नये कम्यून में प्रवेश पाओ िो मेरे हृदय की धड़कन िुम्हारे हृदय की धड़कन हो और मेरी श्वास िुम्हारी श्वास हो। करठनाई िुम्हें होिी है--देर हुई जािी। मन जल्दी है, आिुर है। शुभ है मन की आिुरिा। आग लगा दी जो िुमने वह आंसू से क्या बुझ पाएगी? मुझे पिा है कक मैं आग लगा रहा हं। ये गैररक वस्त्र आग के ही िो प्रिीक हैं। यह तचिा जला रहा हं, तजसमें िुम्हारा अहंकार जले, िुम्हारा देह-भाव जले। िुम्हारा िादात्म्य मन, देह, बुतद्ध सबसे िूट जाए, जल जाए, राख हो जाए। िाकक तसर्फ शुद्ध चैिन्य में ही िुम तवराजमान हो सको। आग लगा दी जो िुमने वह आंसू से क्या बुझ पाएगी? मुझे पिा है नीलम, रो-रो कर यह आग बुझने वाली नहीं। सच िो यह है, रो-रो कर यह आग बिेगी। इसतलए रोने को, मैं कहिा हं, िोड़ना मि। ये आंसू घी का काम करेंगे। प्रेम में तगरे आंसू घी हो जािे हैं। ये इस लपट को और बिाएंगे। और यह आग बुझाने के तलए है भी नहीं, और-और प्रज्वतलि करने के तलए है। आग लगा दी जो िुमने वह आंसू से क्या बुझ पाएगी? गली-गली में द्वार-द्वार पर बैठा दी मैंने शहनाई, पर बीिे कदन भूल न पािा कंपिी स्वर-स्वर में परिाईं गांठ लगा दी जो िुमने वह कैसे स्वयं सुलझ जाएगी? 10

Description:
Utsav_Aamar_Jati,_Anand_Aamar_Gotra_(उत्सव_आमार_जाति,_आनंद_आमार_गोत्र)_OSHO_RAJNEESH.pdf Gagresh
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