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Qasam Us Waqt Ki Hindi Translation-novel- 2nd part of Jab Zindagi Shuru Hogi by Abu Yahya PDF

278 Pages·2015·2.3 MB·Indonesian
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Preview Qasam Us Waqt Ki Hindi Translation-novel- 2nd part of Jab Zindagi Shuru Hogi by Abu Yahya

 एक ऐसी नास्तिक लड़की की कहानी जो सच जानने ननकली थी।  एक खुदा के सच्चे बन्दे की दातिान।  खुदा के होने और क़यामि के आने का ऐसा सुबूि स्जसको झुटलाया नहीीं जा सकिा।  रसूलों की सच्चाई और उनकी स्िन्दगी का स्जन्दा सुबूि।  कु फ्र और नास्तिकिा के हर सवाल का जवाब हर शक़ का इलाज।  एक ऐसी ककिाब जो आप के ईमान को यकीन में बदल दे।  आज की नौजवान नतल के ललए बहिरीन िौहफा। क़सम उस वक़्त की Page 2 ककिाब का नाम _________________ क़सम उस वक़्ि की लेखक _________________________ अब ू याह्या हहन्दी अनुवाद ____________________ मुशररफ अहमद वेब साईट _______________________ www.inzaar.org मूल्य ___________________________ लमलने का पिा ____________________ ®सवारधिकार लेखक के पास सुरक्षिि हैं. ®All rights are reserved to the author. क़सम उस वक़्त की Page 3 ( - 29:69) क़सम उस वक़्त की Page 4  भूलमका >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> 6  काकिर लड़की की एक दआु >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> 7  बेललबासी (नग्न) की स्िल्लि 39 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  फ्राइड की मौि 56 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  वल-अस्र - िमाना गवाह है 81 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  पहली कयामि 96 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  लम्बे इन्सान और आिीं ी 117 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  पहला क़त्ल 142 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  पत्थर िराशने वाले और पत्थर हदल 154 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  राख़ और िूल >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> 171  िीन ना इींसाफी 184 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  सच्चाई की कीमि 201 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  आखरी चमत्कार 227 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>  िरे े जैसा कौन है ? 251 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> क़सम उस वक़्त की Page 5 भूममका पाठकों की सेवा में ''क़सम उस वक़्त की'' के नाम से यह नॉववल प्रस्तुत है। अल्लाह के रहमो करम से इस ककताब में खदु ा के होने और क़यामत के वुजूद को साबबत ककया गया है और ऐस े साबबत ककया गया है कक इन्कार की कोई गुुंजाइश बाकक नह ुं रहती। ज़ाहहर है यह काम एक चमत्कार है जो ककसी इन्सान के वश की बात नह ुं, लेककन अल्हम्दमु लल्लाह यह काम काएनात के रब ने अपनी ककताब कुरआन मजीद में खदु ह कर रखा है। इस नॉवेल में कुरआन मजीद का यह चमत्कार पेश करने की कोमशश की गई है जो आखर हद तक सच्चाई को साबबत कर देता है। इस मामूल बन्दे के अनुसार कुरआन कर म का यह वो चमत्कार है जो दनु नया रहने तक हर इुंसान पर सच्चाई को आखर हद तक साबबत कर देता है। हमारे ववद्वान इस चमत्कार को समझते और अपनी ककताबों में मलखते रहते हैं लेककन ज़्यादा तर आम मुसलमान इसको आसानी से समझ नह ुं पाते। मगर हर मुसलमान की यह जजम्मेदार है कक वो इस चमत्कार को समझ े और दसू रों को समझाए। इुंशा अल्लाह यह नॉववल इस काम को एक कहानी के रूप में आसान करने में बहुत सहायक साबबत होगा। मनैं े इसमें कुरआन की असल दल ल (तकक) के साथ साथ कई और पहलु से इस्लाम पर उठाए जाने वाले सवालों के जवाब भी हदए हैं। यह वो सवाल और ऐतराज़ हैं जो बरसों से लोग मेरे सामने रखते आए हैं। म ैं जानता हूूँ हर जवाब के बाद एक नया ऐतराज़ ककया जा सकता है लेककन कुरआन की जो दल ल इस ककताब में बयान की गई है वह एक ऐसा जज़न्दा चमत्कार है जजसका जवाब देना ककसी नाजस्तक के मलए मुमककन नह ुं। कुरआन मजीद में यह दल ल जगह जगह बबखर हुई है लेककन इसके मलए एक सबसे छोट मगर सबसे व्यापक सूरेह ''अल-अस्र'' को बुन्याद बना कर मनैं े यह नॉववल मलखा है। नॉववल का नाम ''क़सम उस वक़्त की'' कुरआन मजीद की इसी सूरेह के पहले शब्द ''वाल-अस्र'' से मलया गया है. अबू याह्या क़सम उस वक़्त की Page 6 काकिर लड़की की एक दआु ''मुझ े समझ में नह ुं आता कक इस बेवकूफ में नाना अब्बू को क्या खास बात नज़र आई है, क्या अम्मी के बाद वह मेर जज़न्दगी भी बबाकद देखना चाहते हैं?'' गुस्स े और झुुंझलाहट से भरपूर ये शब्द वो पहल बात थे जो फाररया को देख नाएमा की ज़ुबान से ननकले थे, यह फाररया के मलए एक बबल्कुल उसकी उम्मीद से उलट उसका स्वागत हुआ था। फाररया कुछ देर पहले जब नाएमा के कमरे में दाखखल हुई तो वह ककसी गहर सोच में डूबी अपने बबस्तर पर बैठी हुई थी। उसकी ननगाहें खखड़की से बाहर आसमान की ओर बे मक़सद भटक रह थी।ुं वह अपनी सोच में इतना मगन थी कक उस े फाररया के आने का एहसास भी नह ुं हुआ। वह उसके आने से बे खबर अपनी सोचों की दनु नया में खोई रह । फाररया कुछ देर खड़ी नाएमा को देखती रह , उसे नाएमा के चहे रे पर एक नज़र डालते ह अहसास हो गया कक वे ख्यालों के जजस समुद्र में खोई हुई है वहाुं मसफक लहरें ह नह ुं बजल्क ककसी बड़ े तूफ़ान के आसार भी हैं, उसकी ख़ामोशी जजस तूफान की खबर दे रह थी उसके सारे आसार नाएमा के चहे रे पर बबखरे जाहहर हो रहे थे। फाररया को यह अदुं ाजा तो अपने घर पर ह हो गया था कक मामला कुछ गड़बड़ है, आज जैस े ह वह कॉलेज से घर पहुुंची तो नाएमा का फोन आ गया कक फ़ौरन मेरे पास चल आओ, पहले तो फाररया समझी कक नाएमा के नाना इस्माइल साहब की तबीयत की खराबी का कुछ मसला है, क्योंकक वपछले हदनों वह अस्पताल में थे और आज नाएमा कॉलेज भी नह ुं आई थी, मगर नाएमा ने बताया कक उनकी तबीयत ठीक है, हालाुंकक उसने फाररया से बहुत इसरार (आग्रह) ककया कक वह फ़ौरन उसके पास चल आए, इसमलए खाना खाते ह वह उसके घर चल आई। यहाूँ आ कर उसने नाएमा को जजस कफ़क्र के समुन्द्र में गुम देखा उसने उसकी चचतुं ा और भी बढा द , नाएमा ख्यालों की जजस दनु नया में खोई हुई थी वहाुं न दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पहुुंच सकी थी न फाररया के क़दमों की आहट। क़सम उस वक़्त की Page 7 फाररया अपनी बेस्ट फ्रेंड को इस हाल में देखकर बेचनै हो गई, वह बचपन से बहुत गहर सहेमलयाुं थी,ुं दोनों एक ह मुहल्ले में रहे स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ पढे थे, वह नाएमा की सोच, उसके व्यवहार और उसकी नस नस से वाककफ थी, उसे पता था कक नाएमा न े जज़न्दगी ककतनी महरूममयों (वुंचचत) में गुज़ार है, मगर जज़न्दगी की हर मुजककल को उसने बड़ी हहम्मत से झले ा था, वपछले हदनों अपने नाना की बीमार में उसने जजस तरह अपनी मा ुं का साथ हदया था वह खदु उसकी हहम्मत की एक ममसाल थी, घर में नाना के मसवा कोई और मदक नह ुं था, लेककन उसने बड़ी बहादरु से इन हालात का सामना ककया और नाना की सेवा में आगे आगे रह , अपनी ऐसी हौंसला मुंद सहेल की परेशानी फाररया के मलए चचतुं ाजनक थी। फाररया के कमरे में आने के काफी देर बाद भी जब नाएमा ने उसके आने का कोई नोहटस नह ुं मलया तो फाररया ने बहुत प्यार से नाएमा के सर पर हाथ रखकर उसे यहाूँ अपने होने की खबर द । ''हमार फलसफी (दाशनक नक) हसीना ककसकी यादों में खोई हुई है?'' फाररया एक सुखद मज़ाक से बात शुरू करना चाह रह थी, लेककन जवाब में उसे एक सख्त व तेज वाक्य सुनने को ममला जो हर तरह के ररफरेन्स के बबना था। वह कौन बेवक़ूफ़ था जो उसके नाना अब्बू को नज़र आ गया था और नाएमा की जज़न्दगी से उसका क्या ररकता था, फाररया को कुछ समझ में नह ुं आया। उसने नाएमा के बराबर में बैठते हुए प्यार से उसकी कमर को थपथपाया और बोल : ''मसला क्या है? पूर बात बताओ, ऐसे तो मेर समझ में कुछ नह ुं आएगा।'' ''तुम्हें पता है ना कक वपछले कुछ अरस े से हमारे घर में एक बला आ गई है।'' नाएमा ने बुरा सा मूँुह बना कर जवाब हदया। मगर फाररया पर नाएमा का मुद्दा साफ़ (स्पष्ट) नह ुं हो सका, उसने न समझने के अदुं ाज़ में सवाल ककया: ''यार यह पहेल क्यों बुझा रह हो? साफ साफ बताओ ककस बला की बात कर रह हो?'' क़सम उस वक़्त की Page 8 नाएमा ने झल्ला कर कहा: ''वह बला जो वपछले हफ्ते नाना अब्ब ू की बीमार में मुस्तककल तौर (स्थायी रूप) से हमें चचमट गई थी।'' ''तुम अब्दल्ु लाह भाई की बात कर रह हो?'' फाररया पर अब साफ़ हो गया था कक इस खतरनाक लहजे में ककसकी बात हो रह है, उसने कफर भी सवाल के रूप में अपनी बात की पुजष्ट चाह , नाएमा ने हाूँ में सर हहलाते हुए उसी अपमानजनक लहजे में अब्दल्ु ला की बात जार रखी। ''हाुं उसी बेवकूफ की बात कर रह हूूँ जो रोज़ नाना अब्बू के साथ रात को जबरदस्ती रुकता था, हालाुंकक इसकी कोई जरूरत नह ुं थी, पाुंच सात हदन अस्पताल में इन महोदय ने नाना अब्ब ू की क्या सेवा कर ल कक अब वह मुझ े कोई बकर समझ कर मेर रस्सी उम्र भर के मलए उसके हवाले करने पर तुल गए हैं और अम्मी को भी उन्होंने राज़ी कर मलया है।'' नाएमा के लहज़े में गुस्सा, नफरत, हहकारत (नतरस्कार) सब एक साथ जमा थे। ''अच्छा तो ये बात है।'' फाररया ने सर हहलाते हुए कहा। मामला अब उसकी समझ में आ चकु ा था, वह उसका गुस्सा ठुंडा करने के मलए उसे प्यार से समझाने लगी। ''देखो नाएमा! तुम्हार जज़ुंदगी का फैसला तुम्हार मज़ी के खखलाफ नह ुं हो सकता, म ैं आुंट को जानती हूूँ और नाना अब्बू को भी, वे दोनों तुमसे बेहद प्यार करते हैं और तुम्हार सहमनत के बबना कोई फैसला नह ुं करेंगे, मगर क्या आुंट ने तुमसे कोई बात की है?'' उसने एक सवाल पर अपनी बात खत्म की तो नाएमा ने हाूँ में सर हहलात े हुए कहा: ''हाुं उन्होंने मुझसे पूछा था।'' ''तो तुमन े क्या जवाब हदया?'' ''वह जो तुम्हें दे चकु ी हूुं।'' ''कफर उन्होंने क्या कहा?'' ''बस खामोश हो गईं।'' क़सम उस वक़्त की Page 9 ''यार तो बस बात खत्म हो गई, वे यह बात नाना अब्बू को बता देंगी। लेककन यह बताओ कक तुम्हें इतना गुस्सा ककस बात पर है? फाररया न े थोड़ा हैरानी (आकचय)क से पूछा। नाएमा इस सवाल पर खामोश रह तो फाररया ने उसे समझाते हुए कहा: ''वैसे अब्दल्ु लाह भाई इतने बुरे तो नह ुं कक तुम ररकते के नाम से ह इतना नाराज हो जाओ, तुमने ह तो मुझ े बताया था कक वह तुम्हारे हसीन चहरे को पहल बार देखते ह बेहोश हो गए थे।'' नाएमा का मूड ठीक करने के मलए फाररया न े लतीफे के अदुं ाज़ में हुंसते हुए कहा। मगर नाएमा के चहे रे पर मुस्कान की कोई झलक हदखाई नह ुं द , वह मसररयस अदुं ाज़ में बोल : ''उस आदमी का न कोई कैररयर है न स्टेटस, न शक्ल है न सूरत, कफर ऊपर से उसकी मज़हबी (धाममकक) बातें, नाना अब्बू की बीमार में उसकी बातें सुन सुन कर म ैं तो तगुं आ गई थी।'' नाएमा के एक एक शब्द से हहकारत (नतरस्कार) का ज़हर छलक रहा था। ''यार कुछ तो खदु ा का खौफ (डर) करो।'' फाररया भी अपने चहे रे पर गुंभीरता लाते हुए बोल : ''अब्दल्ु लाह भाई का इस समय कोई बड़ा स्टेटस नह ुं मगर कैररयर बहुत शानदार है, उनके पास इुंजीननयररगुं और फायनासुं की बड़ी डडग्रीयाुं हैं, वह पॉजीशन होल्डर रहे हैं, उनकी जॉब भी अच्छी खासी है बजल्क तरक्की की भी सुंभावना है, रह शक्ल की बात तो यह हकीक़त है कक वह ककसी ह रो की तरह नह ुं द खत,े न ऐस े हैं कक हजारों में अलग नज़र आएुं, मगर इतनी बुर शक्ल भी नह ुं कक तुम उनके साथ खड़ी होकर शममदिं ा हो जाओ, अच्छी भल शक्लो सूरत के हैं। और जजन्हें तुम मज़हबी (धाममकक ) बातें कह रह हो, वो तो तसल्ल की कुछ बातें थी ुं जो वह नाना अब्बू की बीमार के दौरान उनसे, आुंट से और तमु से करते रहे.... इसमें क्या बुराई है?'' नाएमा ने पूर बात का जवाब देने के बजाय फाररया के पहले वाक्य को पकड़ मलया। ''ककस खुदा का खौफ करूूँ म?ैं उसका जजसने बचपन में मुझसे मेरा बाप छीन मलया, उसका जजसने सार जज़न्दगी मसवाए गर बी और बुरे हालात के मुझ े कुछ नह ुं हदया? या उसका जजसने जवानी में मेर मा ूँ को ववधवा कर हदया?'' क़सम उस वक़्त की Page 10

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