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Bharat Ka Bhavishya PDF

229 Pages·2.479 MB·Hindi
by  Osho
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भारत का भविष्य प्रिचन-क्रम 1. भारत को जिान वचत्त की आिश्यकता ...................................................................................2 2. नये के विए पुराने को विराना आिश्यक .............................................................................. 11 3. भारत की समस्याएं--कारण और वनदान.............................................................................. 27 4. खोज की दृवि ................................................................................................................... 45 5. भारत ककस ओर?............................................................................................................. 52 6. पुराने और नए का समन्िय ................................................................................................ 62 7. आध्यावममक दृवि .............................................................................................................. 67 8. अविनायकशाही व्यवि की नहीं; विचार की......................................................................... 84 9. वशक्षा और समाज........................................................................................................... 103 10. नारी का सहयोि (ए रेवियो टॉक बाई ओशो) .................................................................... 117 11. भीतर चावहए शांवत और बाहर चावहए असंतोष ................................................................ 120 12. क्या भारत िार्मिक है? ................................................................................................... 134 13. एक नये भारत की ओर ................................................................................................... 148 14. मेरी करुणा बहुत शाश्वत है .............................................................................................. 169 15. भारत का भविष्य ........................................................................................................... 186 16. भारत का दुभािग्य ........................................................................................................... 198 17. क्या भारत को क्रांवत की जरुरत है?.................................................................................. 216 1 भारत का भविष्य पहिा प्रिचन भारत को जिान वचत्त की आिश्यकता मेरे वप्रय आममन्! एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरु करना चाहंिा। सुना है मैंने कक चीन में एक बहुत बड़ा विचारक िाओमसु पैदा हुआ। िाओमसु के संबंि में कहा जाता है कक िह बूढ़ा ही पैदा हुआ। यह बड़ी हैरानी की बात मािूम पड़ती है। िाओमसु के संबंि में यह बड़ी हैरानी की बात कही जाती रही है कक िह बूढ़ा ही पैदा हुआ। इस पर भरोसा आना मुवश्कि है। मुझे भी भरोसा नहीं है। और म ैं भी नहीं मानता कक कोई आदमी बूढ़ा पैदा हो सकता है। िेककन जब मैं इस हमारे भारत के िोिों को देखता हं तो मुझे िाओमसु की कहानी पर भरोसा आना शुरू हो जाता है। ऐसा मािूम होता है कक हमारे देश में तो सारे िोि बूढ़े ही पैदा होते हैं। मुझे कहा िया है कक युिक और भारत के भविष्य के संबंि में थोड़ी बातें आपसे कहं। तो पहिी बात तो मैं यह कहना चाहंिा... देख कर िाओमसु की कहानी सच मािुम पड़ने ििती है। इस देश में जैसे हम सब बूढ़े ही पैदा होते हैं। बूढ़े आदमी से मतिब वसर्ि उस आदमी का नहीं है वजसकी उम्र ज्यादा हो जाए, क्योंकक ऐसा भी हो सकता है कक आदमी का शरीर बूढ़ा हो और आममा जिान हो। िेककन इससे उिटा भी हो सकता है। आदमी का शरीर जिान हो और आममा बूढ़ी हो। भारत के पास भी जिानों की कोई कमी नहीं है, िेककन जिान आममाओं की बहुत कमी है। और जिान आममा को बनाने िािे जो तमि हैं, उनकी बहुत कमी है। चारों ओर युिक कदखाई पड़ते हैं, िेककन युिक होने के जो बुवनयादी आिार हैं उनका जैसे हमारे पास वबल्कुि अभाि है। मैं कुछ प्राथवमक बातें आपस े कहं। पहिी तो बात, युिक मैं उसे कहता हं वजसकी नजर भविष्य की ओर होती ह,ै फ्यूचर की ओर होती है, जो फ्यूचर ओररएनटेि है। और बूढ़ा मैं उस आदमी को कहता हं जो पास्ट ओररएनटेि है, जो पीछे की तरर् देखता रहता है। अिर हम बूढ़े आदमी को पकड़ िें, तो िह सदा अतीत की स्मृवतयों में खोया हुआ वमिेिा। िह पीछे की बातें सोचता हुआ, पीछे के सपने देखता हुआ, पीछे की याददाश्त करता हुआ वमिेिा। बूढ़ा आदमी हमेशा पीछे की तरर् ही देखता है। आि े की तरर् देखने में उस े िर भी ििता है, क्योंकक आिे वसिाय मौत के, वसिाय मरने के और कोई कदखाई बात पड़ती भी नहीं। जिान आदमी भविष्य की तरर् देखता है। और जो कौम भविष्य की तरर् देखती है िह जिान होती है। जो अतीत की तरर्, पीछे की तरर् देखती है िह बूढ़ी हो जाती है। यह हमारा मुल्क सैकड़ों िषों से पीछे की तरर् देखने का आदी रहा है। हम सदा ही पीछे की तरर् देखते हैं, जैसे भविष्य है ही नहीं; जैसे कि होने िािा नहीं है। जो बीत िया कि है िही सब कुछ। यह जो हमारी दृवि है यह हमें बूढ़ा बना देती है। अिर हम रूस के बच्चों को पूछें तो िे चांद पर मकान बनाने के संबंि में विचार करते वमिेंिे। अिर अमरीका के बच्चों को पूछें तो िे भी आकाश की यात्रा के विए उमसुक हैं। िेककन अिर हम भारत के बच्चों को पूछें तो भारत के बच्चों के पास भविष्य की कोई भी योजना, भविष्य की कोई कल्पना, भविष्य का कोई भी स्िप्न, भविष्य का कोई उटोवपया नहीं है। और वजस देश के पास भविष्य का कोई उटोवपया न हो िह देश भीतर से सड़ना शुरू हो जाता है और मर जाता है। 2 भविष्य जजंदा रहने का राज, भविष्य के कारण ही आज हम वनर्मित करते हैं। भविष्य के विए ही आज हम जीते और मरते हैं। वजनके मन में भविष्य की कोई कल्पना खो जाए, उनका भविष्य अंिकारपूणि हो जाता है। िेककन इस मुल्क में न मािूम ककस दुभािग्य के क्षण में भविष्य की तरर् देखना बंद करके अतीत की तरर् ही देखना तय कर रखा है। हम अतीत के ग्रंथ पढ़ेंिे, अतीत के महापुरुषों का स्मरण करेंिे। अतीत की सारी बातें हमारे मन में बहुत स्िणि की होकर बैठ िई हैं। बुरा नहीं है कक हम अतीत के महापुरुषों को याद करें। िेककन खतरनाक हो जाता है अिर भविष्य की तरर् देखने में हमारी स्मृवत बािा बन जाए। कार हम चिाते हैं तो पीछे भी िाइट रखने पड़ते हैं, िेककन अिर ककसी िाड़ी में वसर्ि पीछे ही िाइट हो और आिे िाइट हम तोड़ ही िािें, तो कर्र दुर्िटना के अवतररि और कुछ भी नहीं हो सकता। िाड़ी में भी ररयरव्यू वमरर रखना पड़ता है, एक दपिण रखना पड़ता है वजसमें से पीछे से कदखाई पड़े। िेककन ड्राइिर को हम पीछे की तरर् मुंह करके नहीं वबठा सकते। अतीत का इतना ही उपयोि है वजतना ररयरव्यू वमरर का एक कार में उपयोि होता है। पीछे का भी हमें कदखाई पड़ता रहे। यह जरूरी है। िेककन चिना भविष्य में है, बढ़ना आि ेहै। और अिर भविष्य की तरर् देखने िािी आंखें बंद हो जाएं, तो दुर्िटना के अवतररि और कुछ भी नहीं हो सकता। भारत का दो हजार साि का इवतहास, एक्सीिेंट का, दुर्िटनाओं का इवतहास है। इन दो हजार सािों में हम वसिाय िड्ढों में विरने के ककन्हीं ऊंचाइयों पर नहीं उठे। िुिामी देखी है, िरीबी देखी है, बहुत तरह की दीनता और बहुत तरह की परेशानी देखी है। और आज भी हमारे पास भविष्य की कोई ऐसी योजना नहीं है कक हम यह सोच सकें कक आन े िािा कि आज से बेहतर हो सकेिा। िरन जिान से जिान आदमी से भी बात की जाए तो िह भी यही कहता हुआ वमिेिा कक कि और वस्थवत के वबिड़ जाने का िर है। रोज चीजें वबिड़ती चिी जाएंिी ऐसी हमारी िारणा है। इस िारणा के पीछे कुछ कारण हैं। हमने अपने उटोवपया को पास्ट ओररएनटेि रखा हुआ है। इस देश में हमने जो समय की िारणा की है, जो हमारा टाइम आििर है, िह यह कहता है कक सबसे अच्छा युि हो चुका। अब आने िािा युि बुरा होिा। सतयुि हो चुका, कवियुि हो रहा है और रोज हम अंिकार में उतरते चिे जाएंिे। जो भी अच्छा था िह बीत चुका। राम, कृष्ण, नानक, कबीर, बुद्ध, महािीर, जो भी अच्छे िोि हो सकते थे िे हो चुके। अब भविष्य, भविष्य में जैसे कोई अच्छे होने का हमें उपाय कदखाई नहीं पड़ता। िेककन ध्यान रहे, जो भविष्य में अच्छे आदवमयों को पैदा हम न कर पाए तो हमारे अतीत के अच्छे आदमी झूठे मािूम पड़ने ििेंिे। अिर हम भविष्य में और श्रेष्ठताएं न छू सके तो हमारे अतीत की सारी श्रेष्ठताएं काल्पवनक और कहावनयां मािूम पड़ने ििेंिी। क्योंकक बेटा बाप का सबूत होता है। और अिर बेटे िित वनकि जाएं तो अच्छे बाप की बात वसर्ि मन भुिाने की बात रह जाती है। िह ििाही नहीं रह जाता। भविष्य तय करेिा कक हमने अतीत में राम को पैदा ककया या नहीं पैदा ककया। अिर हम भविष्य में राम से बेहतर आदमी पैदा कर सकते हैं तो ही हमारे राम सच्च े सावबत होंिे। अिर हम राम से बेहतर आदमी पैदा नहीं कर सकते तो दुवनया हमसे कहेिी कक राम वसर्ि कहानी ह,ैं यह आदमी तुमने कभी पैदा ककया नहीं। अिर हम भविष्य में भीख मांिेंिे तो कोई मानने को राजी न होिा कक हमारे पास स्िणि की निररयां थीं। और अिर भविष्य में हम वसर्ि िुंिे और बदमाशों को पैदा करेंिे तो नानक पर ककतने कदन तक भरोसा रह जाएिा कक यह आदमी हुआ था। यह बहुत ज्यादा कदन तक भरोसा नहीं रह जाएिा। इसविए पीछे के अच्छे 3 आदवमयों को याद करना कार्ी नहीं है। अिर सच में ये अच्छे आदमी हुए हैं, हम ऐसा दुवनया को कहना चाहते हों, तो हमें इनसे भी बेहतर आदमी रोज पैदा करने होंिे। जो रोज ऊंचाइयां चढ़ते हैं, िे ही ििाही दे सकते हैं कक उनके अतीत में भी उन्होंने ऊंचाइयां छुई होंिी। िेककन अिर हम रोज िड्ढों में विरते चिे जाएं तो कर्र दुवनया हमसे कहेिी कक अक्सर वभखमंिे सपने देखते ह ैं कक उनके बाप सम्राट थे। िेककन यह सपनों से कुछ वसद्ध नहीं होता। इससे वसर्ि इतना ही वसद्ध होता है कक वभखमंिे कंसोिेशंस खोज रहे हैं, सांमिनाएं खोज रहे हैं, अपने मन को समझा रहे हैं। भूखा आदमी रात में सपना देखता है राजमहि में वनमंत्रण वमिने का। िेककन रात का सपना यह नहीं बताता कक राजमहि में वनमंत्रण वमिा। मनोिैज्ञावनक कहते हैं कक उससे इतना ही पता चिता है कक िह आदमी कदन में भूखा रहा है। हम जब अतीत की बहुत ज्यादा चचाि करते हैं तोशक पैदा होता है। और जब हम पीछे के िोिों की बहुत िौरि िररमा की बात करते हैं तोशक पैदा होता है। क्योंकक दुवनया हमें देखती है। हम दुवनया को कहना चाहते हैं कक हम जितिुरु थे। िेककन आज दुवनया में एक भी ऐसी चीज नहीं है जो हम ककसी को वसखा सकें। सारी चीजें हमें दूसरों से सीखनी पड़ रही हैं। यह जितिुरु की नासमझी की बात बहुत कदन तक रटक नहीं सकेिी। और आज नहीं कि अिर दुवनया हमारा मजाक उड़ाने ििे और हमसे कहने ििे कक हम जितिुरु होने का ख्याि इसीविए मन में पैदा कर विए हैं क्योंकक हम सारे जित के वशष्य हो िए हैं। और इस बात को भुिाने के विए, अपने अहंकार को बचाने के विए हम इस तरह की बातें कर रहे हैं, तो इसमें बहुत आश्चयि न होिा। आज सूई से िेकर हिाई जहाज तक भी हमको बनाना हो तो सारी दुवनया में कहीं और हमें सीखने जाना पड़ता है। आज हमारे पास वसखाने योग्य कुछ भी नहीं बचा है। आज हम दुवनया को कुछ भी वसखा नहीं सकते। िेककन हम यह बात कहे चिे जाएंिे कक हम कभी दुवनया के िुरु थे। ध्यान रहे, जब कोई कौम यह बात करने ििती है, पास्ट टेंस में जब कोई कौम बोिने ििती है, तो समझ िेना कक िह दीन हो िई। जब कोई कहने ििे कक मैं अमीर था, तब समझ िेना कक िह िरीब हो िया है। और जब कोई कहने ििे कक मैं ज्ञानी था, तब समझ िेना कक िह अज्ञान में विर िया है। और जब कोई कहने ििे कक कभी हमारी शान थी, तो समझ िेना कक शान वमट्टी म ें वमि चुकी है। ये सारी बातें जो हम िौरि की करते हैं हमारे िूवि में विर जाने के अवतररि और ककसी बात का प्रमाण नहीं है। अतीत को देखना उपयोिी हो सकता है, िेककन अतीत को आंख में रखना खतरनाक है। आंख में तो भविष्य होना चावहए, आन े िािा कि होना चावहए। जो बीत िया कि िह बीत िया। उसकी िूि उड़ चुकी है। अब जमीन पर कहीं खोजने से उस े खोजा नहीं जा सकता। अब वजस रास्ते पर हम चि चुके िह रास्ता समाप्त हो िया है। और उस रास्ते पर बने हुए चरण-वचह्न अब कहीं भी नहीं खोजे जा सकते हैं। जजंदिी की कहानी आकाश में उड़ते हुए पवक्षयों की कहानी है। अिर हम ककसी पक्षी का पीछा करें तो उसके पैरों के कोई वचह्न नहीं छूटते हैं कहीं भी, पक्षी उड़ जाता है पीछे आकाश खािी हो जाता है। जजंदिी में कहीं कोई वचह्न नहीं छूटते। जजंदिी में सब विस्मृत हो जाता है। जजंदिी तो प्रमाण मानती है आज को। आज हम क्या हैं? यही प्रमाण होता है। आज हम क्या हैं? अिर इसे सोचें तो दो-तीन बातें ख्याि में आएंिी। हमसे ज्यादा िरीब आदमी आज पृथ्िी पर दूसरा नहीं है। हमसे ज्यादा अवशवक्षत कोई कौम नहीं है। हमसे ज्यादा अिैज्ञावनक कोई जावत नहीं है। हमसे ज्यादा कमजोर, हमसे ज्यादा हीन, हमसे कम उम्र, हमसे ज्यादा बीमार आज जमीन पर कोई भी नहीं है। दूसरे मुल्कों की औसत उम्र 4 अस्सी िषि को छू रही है। दूसरे मुल्कों में, आज रूस में सौ िषि के ऊपर हजारों बूढ़े, और िेढ़ सौ िषि के ऊपर भी कुछ बूढ़े हैं। सारी दुवनया में िरीबी विदा होने के करीब है और हमारी िरीबी रोज बढ़ती चिी जाती है। जब वपछिे बार वबहार में अकाि पड़ा, तो मेरे एक स्िीविश वमत्र ने मुझे एक पत्र विखा और उसने विखा कक हम अपने बच्चों को समझाने में बहुत असमथि हैं कक जहंदुस्तान में िोि भूखे मर रहे हैं। उसने मुझे विखा कक जब मैं अपने छोटे बच्चे को कहा कक जहंदुस्तान में िोि भूखे मर रहे हैं और करोड़ों िोि भूखे मर जाएंिे। तो उस छोट े बच्चे ने कहा कक क्या उनके पास, अिर रोटी नहीं है तो र्ि भी नहीं हैं? तो उन्होंने कहााः नहीं, उनके पास र्ि भी नहीं हैं। तो उस छोटे बच्चे ने कहााः उनके रेकिवजरेटर में कुछ तो बचा होिा? तो उसके बाप ने कहा कक रेकिवजरेटर उनके पास है ही नहीं। उसमें बचने का कोई सिाि नहीं है। उस बच्चे को समझना मुवश्कि हुआ कक कोई कौम ऐसी हो सकती है जहां खाने को भी न हो। सच में ही स्िीिन के बच्चे को समझना मुवश्कि पड़ेिा। उसको मुवश्कि इसविए पड़ जाएिा क्योंकक बच्चा जो देखता है चारों तरर्, न ककसी को भीख मांिते देखता है, न ककसी को िरीबी में मरते देखता है। तो उसके विए भरोसा करना मुवश्कि है कक जमीन पर ऐसे िोि भी हैं जो करोड़ों की संख्या में भूखे मरने की हाित में आ सकते हैं। अभी एक अमरीकी अथिशास्त्री ने ककताब विखी है। उन्नीस सौ सत्तासी और उस ककताब में उसने यह र्ोषणा की है कक उन्नीस सौ सत्तासी में, आज से केिि सात साि बाद, जहंदुस्तान में इतना बड़ा अकाि पड़ सकता है वजसमें कोई दस करोड़ से िेकर बीस करोड़ िोिों के मरने की संभािना है। मैं कदल्िी में एक बहुत बड़े नेता से बात कर रहा था। तो उन्होंने कहााः उन्नीस सौ सत्तासी अभी बहुत दूर है। अभी तो हमें उन्नीस सौ बहत्तर की कर्कर है। उसके बाद देखा जाएिा। अभी वसर्ि उन्नीस सौ बहत्तर में जो इिेक्शन होिा उसकी नेता को कर्कर है। सात साि बाद जहंदुस्तान में दस करोड़ िोि मर सकते हैं। इसकी सारी दुवनया के अथिशास्त्री राजी हैं इस बात के विए कक यह होकर रहेिा। क्योंकक अमरीका वजतना हमें भोजन दे रहा है उतना अब आिे नहीं दे पाएिा। उसकी ताकत रोज कम होती जा रही है। अमरीका में चार ककसान वजतना काम करते हैं उनमें से एक ककसान की सारी ताकत हमें वमि रही है। और अमरीका की ताकत देने की रोज कम होती चिी जाती है। उन्नीस सौ वपचासी के बाद अमेररका जहंदुस्तान को ककसी तरह का अन्न देने में समथि नहीं होिा। और हम रोज बच्चे पैदा करते चिे जाते हैं। हम वसर्ि एक चीज में बहुत प्रोिवक्टि हैं, हम बच्चे पैदा करने में बहुत उमपादक हैं। हम बच्चे पैदा करते चिे जाते हैं। अिर ककसी कदन इस मुल्क में दस करोड़ िोिों को ककसी अकाि में मरना पड़ा, तो बाकी जो िोि बचेंिे िे भी जजंदा हाित में नहीं बचेंिे। िे भी मरने की हाित में ही बचेंिे। उनका बचना बचने से भी बदतर होिा। उनका बचना शायद मरे हुए िोिों से भी ज्यादा करठन और दूभर हो जाएिा। िेककन क्या कारण हैं कक सारी जमीन पर िन बरस रहा है और हम िरीब होते चिे जा रहे हैं? आज अमेररका में िन बरस रहा है, और अमरीका की कुि उम्र तीन सौ साि की है। अमरीका में जो समाज है आज िह तीन सौ साि पुराना है और हमारी उम्र कम से कम दस हजार साि पुरानी है। हम दस हजार साि पुरानी सयता और तीन सौ साि पुरानी सयता के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांिते हुए खड़े हैं। न हमें शमि आती, न हमें जचंता पैदा होती, न हमें र्बड़ाहट होती, न हमें ऐसा ििता कक हम ये क्या कर रहे हैं! दुवनया में वभखारी तो सदा रहे हैं, िेककन कोई पूरा देश वभखारी हो सकता है इसका उदाहरण हमने पहिी बार उपवस्थत ककया है। 5 आज हर चीज की हमें भीख चावहए। इस भीख के वबना हम जी नहीं सकते। यह कब तक चिेिा? यह कैसे चि सकता है? यह तब तक चिता ही रहेिा जब तक भविष्य को वनर्मित करने की हमारे पास कोई दृवि नहीं है, कोई कर्िासर्ी नहीं है। वजसमें हम भविष्य को बनाने के विए आतुर हो जाएं। हम वसर्ि पीछे की बातें करते रहेंिे तो भविष्य को वनर्मित कौन करेिा? हम वसर्ि िुणिान करते रहेंिे अतीत का, तो भविष्य के विए श्रम कौन करेिा? तो मैं युिा आदमी का पहिा िक्षण मानता हं भविष्य के विए उन्मुखता और बूढ़े आदमी का िक्षण मानता हं अतीत के प्रवत ििाि। वजस आदमी के मन में भी भविष्य के प्रवत ििाि है उसकी उम्र कुछ भी हो, िह जिान है और वजस आदमी के मन में भविष्य की कोई कल्पना ही नहीं है और वसर्ि अतीत का िुणिान है उसकी उम्र कुछ भी हो िह बूढ़ा है। तो मैं यह आपसे कहना चाहंिा कक भारत में अभी भी जिान आदमी बहुत कम हैं। एक दूसरी बात भी आपस े कहना चाहंिा, बूढ़ा आदमी मृमयु से भयभीत होता है। स्िभािताः मौत करीब आती ह ै तो बूढ़ा आदमी मृमयु से िरने ििता है। जिान आदमी का िक्षण एक ही है कक िह मौत से र्बड़ाता न हो। अिर जिान आदमी भी मौत से र्बड़ाता हो तो उसका मतिब इतना ही हुआ कक िह बहुत पहिे ही बूढ़ा हो िया। जहंदुस्तान में मृमयु का इतना भय है वजसकी कल्पना करनी मुवश्कि है। होना सबसे कम चावहए, क्योंकक हम अकेिी कौम हैं सारी दुवनया में, वजनका ऐसा मानना है कक आममा अमर है और मरती नहीं है। हम सारी दुवनया में यह कहते रहे हैं कक आममा अमर है और मरती नहीं है। यह बात सच है, आममा अमर है और मरती नहीं है। िेककन कहने से यह बात सच नहीं होती। और जरूरी नहीं है कक जो िोि कहते हों िे ऐसा मानते भी हों। आदमी का मन बहुत उिटा है। असि में जो आदमी मरने से िरता ह ै िह भी कह सकता है कक आममा अमर है। और अपने मन को समझाने के विए आममा की अमरता के वसद्धांत का उपयोि कर सकता है। जहंदुस्तान को देख कर ऐसा ििता है कक हम मरने से तो बहुत िरते हैं और साथ ही आममा के अमरता की बात भी ककए चिे जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कक बूढ़ा आदमी मंकदर में बैठ कर आममा की अमरता के शास्त्र पढ़ने ििता है। आममा अमर है ऐसा पढ़ कर उसके मन को अच्छा ििता है कक मैं मरूं िा नहीं। िेककन अिर यह भय के कारण ही िह पढ़ रहा है तो इस कारण कोई ज्ञान उमपन्न नहीं हो जाएिा। और अिर इस बात का ज्ञान उमपन्न हो जाए कक मैं अमर हं और मरूं िा नहीं, तो हमारे इस मुल्क को िुिाम बनाना असंभि हो जाता। हम एक हजार साि िुिाम रहे हैं और हम कि भविष्य में ककसी भी कदन िुिाम कर्र हो सकते हैं। हमारे सारे उपाय ऐसे हैं कक हम ककसी भी कदन िुिाम हो सकते हैं। िेवनन ने उन्नीस सौ बीस में एक र्ोषणा की थी मास्को में कक कम्युवनज्म मास्को से यात्रा करके पेककंि होता हुआ किकत्ते से िुजरता हुआ िंदन पहुंच जाएिा, पेककंि तो पहुंच िया और किकत्ते में भी पैरों की आिाज सुनाई पड़ने ििी। आज किकत्ते की सड़कों पर जिह-जिह पोस्टर ििे हुए हैं कक चीन के अध्यक्ष माओ हमारे भी अध्यक्ष हैं, चीन के चेयरमैन माओमसु तुंि भारत के भी चेयरमैन हैं। ये किकत्ते की सड़कों पर जिह- जिह पोस्टर ििे हैं। हम िुिामी को कर्र बुिाने की चेिा में िि िए। और इसके पहिे भी जहंदुस्तान में वजतनी बार िुिामी आई हमने बुिाया। एक हजार साि िुिाम रहने के बाद भी हमें कुछ अंदाज नहीं है, हम कर्र िुिामी बुिा सकते हैं। हम नये नामों स े िुिामी बुिा िेंिे। कम्युवनज्म जहंदुस्तान के विए िुिामी वसद्ध होिी। और आज बंिाि में जो कदखाई 6 पड़ रहा है कि पूरे जहंदुस्तान में कदखाई पड़ेिा। आज बंिाि में जो है िह कि पूरे जहंदुस्तान में र्ैि जाएिा इसमें बहुत आश्चयि नहीं है। क्योंकक हम िरे हुए िोि, हम मरने से भयभीत िोि, हम वबना ककसी चीज से कुछ भी आए उसे झेिने को सदा तमपर और उसमें ही संतुि हो जाने के विए राजी िोि हैं। बूढ़ा आदमी भय के कारण हर चीज से राजी हो जाता है। जिान आदमी िड़ता है, जिान आदमी जजंदिी को बदिने की कोवशश करता है, बूढ़ा आदमी जजंदिी जैसी होती है उसके विए राजी हो जाता है। बूढ़ा आदमी कहता है, सब भाग्य है। जिान आदमी कहता है, भाग्य हमारे श्रम के अवतररि और कुछ भी नहीं है। बूढ़ा आदमी कहता है, जो भी कर रहा है भििान कर रहा है। जिान आदमी कहता है, जो भी हम करेंिे भििान का आशीिािद उस े उपिब्ि होिा। जिान आदमी एक संर्षि है और बूढ़ा आदमी एक संतोष है, एक सेरटसर्ेक्शन है। अिर िुिामी आ जाए तो उससे भी संतोष कर िेंिे, िरीबी आ जाए उससे भी संतोष कर िेंिे, जो भी हो जाए उससे हम संतुि हो जाएंिे। संतुि अिर हमने होने की आदत नहीं बदिी तो इस मुल्क को भविष्य में कर्र और भी महा अंिकार देखने के क्षण आ सकते हैं। मैं अभी बंिाि में था। तो बंिाि में जो मुझे कदखाई पड़ा, चाहता हं, पूरे मुल्क के एक-एक युिक को कह दंू कक िह िुिामी को वनमंत्रण है। और बंिाि राजी हो जाएिा। बंिाि में दस-पच्चीस आदमी अिर एक सड़क पर एक पुविसिािे की हमया कर रहे हैं, तो पूरे िोि अपने दरिाजे बंद करके बैठ रहेंिे। िे भीतर बैठ कर इस बात की जनंदा करेंिे कक बहुत बुरा हो रहा है। िेककन उस बुरे के वखिार् िड़ने बाहर नहीं वनकिेंिे। अिर एक बस में आि ििाई जा रही है, तो यात्री बस में चिने िािे उतर कर नीच े खड़े हो जाएंिे और खड़े होकर चचाि करेंिे बहुत बुरा हो रहा है। िेककन कोई उन आि ििाने िािे पांच आदवमयों को रोकने की वहम्मत नहीं जुटाएिा। इतनी कायर कौम कैसे जिान हो सकती है! इतना कमजोर वचत्त कैसे जिान हो सकता है! पूरा बंिाि देखता रहेिा, थोड़े से िोि बेिकूकर्यां करेंिे और पूरा बंिाि झुक जाएिा और आज नहीं कि पूरा जहंदुस्तान झुक जाएिा। दो िाख आदवमयों की बस्ती में दो सौ आदमी कुछ भी करना चाहें, तो दो िाख की बस्ती झुक जाएिी और राजी हो जाएिी। जहंदुस्तान पर चीन का हमिा हुआ, तो सारा जहंदुस्तान कविता करने ििा था, आपको भी पता होिा। सारा जहंदुस्तान कहने ििा था कक हम सोए हुए शेर हैं, हमें छेड़ो मत! तो मैंने कई कवियों से पूछा कक शेरों ने कभी भी नहीं कहा है कक हम सोए हुए शेर हैं, हमें छेड़ो मत! छेड़ो और पता चि जाता है कक शेर है या नहीं! कविताएं करने की जरूरत नहीं होतीं। िेककन पूरे जहंदुस्तान ने कविताएं कीं। जिह-जिह कवि सम्मेिन हुए, िोिों न े तावियां बजाईं। और वजन िोिों न े कविताएं कीं--कोई को पद्मश्री की उपावि वमि िई, कोई राष्ट्रकवि हो िया, ककसी को राष्ट्रपवत ने स्िणि-पदक भेंट कर कदए। और चीन जहंदुस्तान की जमीन दबा कर बैठ िया। और िे सोए हुए शेर सब िापस कविता करके सो िए। उनका कुछ भी पता नहीं चिा कक िह कहां चिे िए! िाखों मीि की जमीन में चीन ने कब्जा कर विया। तो जहंदुस्तान के नेताओं ने बाद में कहना शुरू ककया कक िह जमीन बेकार थी। िह जमीन ककसी काम की ही न थी। उसमें र्ास भी पैदा नहीं होता था। अिर िह जमीन बेकार थी तो कर्र जिानों को िड़ाना बेकार था। पहिे ही जमीन छोड़ देनी थी। और अिर जमीन पर र्ास भी नहीं उिती थी तो उसके विए िड़ने की कोई जरूरत नहीं थी। तो मैं उन नेताओं से कहता हं कक अभी 7 भी देश में वजतनी जमीन और बेकार हो उस े चुपचाप दूसरों को दे देना चावहए, ताकक कोई झंझट न हो, कोई झिड़ा न हो। यह जो हमारा वचत्त है इस वचत्त को मैं बूढ़ा, ओल्ि माइंि, बूढ़ा वचत्त कहता हं। यह बूढ़ा वचत्त हर चीज में संतोष खोज िेता है। इस बूढ़े वचत्त को तोड़ना पड़ेिा। अतीत की तरर् देखना बंद करना पड़ेिा, भविष्य की योजना बनानी होिी, संतोष छोड़ना पड़ेिा, एक। एक वनमािण की असंतोषकारी ज्िािा चावहए, एक सृजन की आि चावहए। और िह आि तभी होती है जब हम हर कुछ के विए राजी नहीं हो जाते। जब हम दुख को वमटाने का संकल्प करते हैं, अज्ञान को वमटाने का संकल्प करते हैं, जब हम बीमारी को तोड़ने का संकल्प करते हैं, जब हम दीनता, दररद्रता और दासता को वमटाने की कसम खाते है, तब भविष्य वनर्मित होना शुरू होता है। एक छोटी सी कहानी और अपनी बात मैं पूरी करूं िा। मैंने सुना है, जापान में एक छोटे से राज्य पर हमिा हो िया। बहुत छोटा राज्य और बड़े राज्य ने हमिा ककया था। उसका सेनापवत र्बड़ा िया और उसने अपने सम्राट को जाकर कहा कक मैं िड़ने पर नहीं जा सकूंिा। सेनाएं कम हैं, सािन कम हैं, हार वनवश्चत है। इसविए व्यथि अपने सैवनकों को कटिाने की कोई जरूरत नहीं हैं। हार स्िीकार कर िें। उस सम्राट ने कहा कक मैं तो तुम्हें समझता था कक तुम एक बहादुर आदमी हो, जिान हो, तुम इतने बूढ़े सावबत हुए! िेककन जब सेनापवत ने तििार नीचे रख दी तो सम्राट भी बहुत र्बड़ाया। िांि में एक र्कीर था। सम्राट उसके पास िया। जब भी कभी मुसीबत पड़ी थी उस र्कीर से सिाह िेने िह िया था। उस र्कीर ने कहा कक इस सेनापवत को र्ौरन कारािृह में िाि दो। क्योंकक इसकी यह बात, कक हार वनवश्चत है, हार को वनवश्चत कर देिी। आदमी जो सोच िेता है, िह हो जाता है। और जब सेनापवत कहेिा हार वनवश्चत है तो सैवनक क्या करेंिे! उनकी हार तो वबल्कुि वनवश्चत हो जाएिी। इसे कारािृह में िाि दो और कि सुबह मैं सेनापवत बन कर आपकी सेनाओं को युद्ध के मैदान पर िे जाऊंिा। राजा बहुत र्बड़ाया! क्योंकक सेनापवत योग्य था, युद्धों का अनुभिी था, िह िर िया और र्कीर वजसे तििार पकड़ने का भी कोई पता नहीं था, जो कभी र्ोड़े पर भी नहीं बैठा था, िह युद्ध के मैदान पर क्या करेिा! िेककन कोई उपाय न था। और राजा को राजी होना पड़ा। िह र्कीर सेनाओं कोिेकर युद्ध के मैदान पर चि पड़ा। राज्य की सीमा पर, नदी को पार करने के पहिे, उस पार दुश्मन के पड़ाि थे, उस सेनापवत ने मंकदर के वनकट रुक कर अपने वसपावहयों को कहा कक मैं जरा मंकदर के देिता को पूछ िूं कक हमारी हार होिी कक जीत? उन सैवनकों ने कहााः देिता कैसे बताएिा और देिता की भाषा हम कैसे समझेंिे? उस र्कीर ने कहााः भाषा समझने का उपाय मेरे पास है। उसने खीसे से एक चमकता हुआ सोने का रुपया वनकािा, आकाश की तरर् र्ेंका और मंकदर के देिता से कहा कक अिर हमारी जीत होती हो तो वसक्का सीिा विरे और अिर हार होती हो तो उिटा विरे। सैवनकों की श्वासें रुक िईं! जीिन-मरण का सिाि था! िह रुपया नीचे विरा, िह सीिा विरा! उस र्कीर ने कहााः अब तुम कर्कर छोड़ दो, हार का अब कोई उपाय नहीं है, हम हारना भी चाहें तो अब हार नहीं सकते, परमाममा साथ है। वसक्के को खीसे में रख कर िे युद्ध में कूद पड़े। आठ कदन बाद, अपने से बहुत बड़ी र्ौजों को जीत कर िे िापस िौटे। उस मंकदर के पास से िुजरते थे, तो सैवनकों ने र्कीर को याद कदिाई कक परमाममा को कम से कम िन्यिाद तो दे दें, वजस परमाममा ने हमें वजताया। 8 उस र्कीर ने कहााः परमाममा का इससे कोई भी संबंि नहीं है आिे बढ़ो। उन सैवनकों ने कहााः आप भूि िए मािूम होता है। युद्ध की विजय के नशे में मािूम होता है िन्यिाद का भी ख्याि नहीं। तो उस र्कीर ने कहा, अब तुम पूछते ही हो तो मैं तुम्हें राज बताए देता हं। उसने रुपया वनकाि कर दे कदया। िह वसक्का दोनों तरर् सीिा था, उसमें कोई उिटा वहस्सा नहीं था। िे सैवनक जीते, क्योंकक जीत का ख्याि वनवश्चत हो िया। विचार अंतताः िस्तुएं बन जाते हैं, विचार अंतताः र्टनाएं बन जाते हैं। एजिंग्टन का एक बहुत प्रवसद्ध िचन हैाः जथंग्स आर थाट्स एण्ि थाट्स आर जथंग्स। वजसे हम िस्तु कहते हैं, िह भी विचार है। और वजसे हम विचार कहते हैं, िह भी कि िस्तु बन सकता है। वजसे हम जजंदिी कहते हैं, िह कि ककए िए विचारों का पररणाम है। वजसे हम आज कहते हैं, िह कि के विचारों का वनष्कषि है। और कि जो होिा िह आज के विचारों का पररणाम होिा। मैं भारत को जिान देखना चाहता हं। िेककन भारत के मन को बदिना पड़ेिा, तो ही भारत जिान हो सकता है। मैं भारत को बूढ़ा नहीं देखना चाहता हं। हम बहुत कदन बूढ़े रह चुके। हम बूढ़े हैं हजारों साि से। यह भारत का बुढ़ापा तोड़ना पड़ेिा, इस भारत के बुढ़ापे को वमटाना पड़ेिा। इस भारत के बुढ़ापे को अिर हम नहीं वमटा पाए तो अब तक हमने जो िुिावमयां देखी थीं िे बहुत छोटी थीं। न तो मुसिमान इतनी बड़ी िुिामी िा सकते थ,े न अंग्रेज इतनी बड़ी िुिामी िा सकते थे। वजतनी बड़ी िुिामी कम्युवनज्म जहंदुस्तान में िा सकता है। और कम्युवनज्म की िुिामी और भी खतरनाक इसविए है कक अब तक जो भी िुिावमयां थीं िे िुिावमयां िैज्ञावनक नहीं थीं। कम्युवनज्म पहिी दर्ा टेक्नािॉवजकिी, िैज्ञावनक ढंि से आदमी को िुिाम बनाने में समथि है। आज चीन में आदवमयों का माइंि-िॉश ककया जा रहा है। आदमी को मारने की जरूरत भी नहीं है, उसके कदमाि को पूरा िोकर सार् ककया जा सकता है--जैसे वसिेट-पट्टी को िोकर सार् ककया जाता है। ये िुरुद्वारे, ये मंकदर, ये मवस्जद ज्यादा कदन नहीं बचेंिे, अिर जहंदुस्तान पर कम्युवनज्म आता है तो हमारे कदमाि ज्यादा कदन तक नहीं बचेंिे जो थे, िे पोंछ िािे जाएंिे। आज रूस में कहां है िुरुद्वारा, कहां ह ै मवस्जद, कहां है मंकदर? आज चीन में कहां है? िह सब विदा हो िया। मनुष्य के िमि पर सबसे बड़ा खतरा कम्युवनज्म है। अभी मैं आ रहा था, तो आपके जप्रंवसपि ने मुझे कहा कक आप िमि के वखिार् कुछ मत बोि देना। मैं बहुत हैरान हुआ! मैं बहुत हैरान हुआ कक अिर एक िार्मिक व्यवि िमि के वखिार् कुछ बोिेिा, तो कर्र िमि के पक्ष में कौन बोिेिा? पर उनके भय से मुझे ििा कक िमि कहीं इतना कमजोर हो िया है कक अपने वखिार् बोिी िई बातों का जिाब देने में भी ताकतिर नहीं मािूम पड़ता है, इसविए इतना िर है भीतर। िेककन इतना िर कर िमि बचेिा नहीं। िरा हुआ िम ि कैसे बचेिा? िरा हुआ िमि नहीं बच सकता। उन्होंने मुझसे कहा कक आप ककन्हीं शास्त्रों के वखिार् कुछ मत बोि देना। वजसके वखिार् बोिा जा सकता है िह शास्त्र ही नहीं है। वजसके वखिार् नहीं बोिा जा सकता िही शास्त्र है। और वजसके वखिार् बोिे जाने म ें िर मािूम पड़ता है, िह कमजोर ह,ै िह समय नहीं हो सकता। वजसके वखिार् सारी दुवनया बोिती हो तो भी वजसका रत्ती भर न टूटता हो िही समय है। उतना ही बच जाए तो कार्ी है, बाकी कचरे को बचाने की कोई जरूरत भी नहीं है। िेककन हम भयभीत हैं, हम बहुत िरे हुए हैं। और इतने िरे हुए िोि िमि को और शास्त्र को बचा सकेंिे यह मुझे संभि नहीं कदखाई पड़ता। 9 भारत का बूढ़ा मन िमि की पूजा कर सकता है, िमि को बचा नहीं सकता। भारत को जिान वचत्त पैदा करना पड़ेिा िही िमि को बचा सकेिा। एक और अंवतम बात आपसे कह दं।ू अिर हमने वसक्ख िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने जहंदू िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने जनै िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने मुसिमान िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने िमि को बचाना चाहा तो िमि बच सकता है। असि में जब हम िमों को पचास वहस्सों में तोड़ देते हैं तो अिमि से िड़ने की ताकत कम हो जाती है। अिमि से िड़ेिा कौन? िमि आपस में िड़ते हैं! मंकदर-मवस्जद िड़ते हैं। कम्युवनज्म से कौन िड़ेिा? जहंदू- मुसिमान िड़ते हैं, जहंदू-वसक्ख िड़ते हैं, जहंदू-जनै िड़ते हैं। आज भी चीन में बौद्धों का मठ विराया जा रहा है, मुसिमानों की मवस्जद विराई जा रही है, ईसाइयों का चचि तोड़ा जा रहा है। कर्र भी बौद्ध ईसाई के वखिार् बोिे चिे जाते हैं, ईसाई मुसिमान के वखिार् बोिे चिे जाते हैं, मुसिमान बौद्धों के वखिार् बोिा चिा जाता है। ये िार्मिक आदमी हैं या पािि हो िए िोि हैं! अिर िमि को दुवनया में बचाना है, तो िमि को बचाने की तैयारी करनी पड़ेिी। छोट-े छोटे मोह छोड़ने पड़ेंिे। मेरा िमि नहीं बचेिा अब, अब िमि बच सकता है। और िमि तभी बच सकता है जब िमि आपस में िड़ने का पाििपन बंद कर दे। अन्यथा िमि आपस में िड़ते हैं और अिमि की तो कोई िड़ाई अिमि से नहीं होती। यह ककतने मजे की बात कक दुवनया में िमि तीन सौ पचास हैं और अिमि एक है। अिमि का कोई विभाजन नहीं है और िमि के इतने विभाजन हैं। विभावजत िमि बच नहीं सकेिा। अविभावजत िमि बच सकता है। चाहे जहंदू हो, चाहे वसक्ख, चाहे मुसिमान, चाहे जनै , अिर हम िमि को बचाना चाहते हों तोकम्युवनज्म से टक्कर िी जा सकती है। और अिर हमने अपने छोटे-छोटे िमों को बचाने की कोवशश की तो ये सब िूब जाएंिे और अिमि जीतेिा। अिर हम समय को बचाना चाहते हों, तो हमें मेरे का आग्रह छोड़ देना चावहए। अिर हम समय को बचाना चाहते हों, तो हमें छोटी-छोटी दीिािों का मोह छोड़ देना चावहए। िेककन िह मोह हमारा नहीं छूटता। बूढ़े मन के मोह बड़ी मुवश्कि से छूटते हैं। इसविए मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, भारत का वचत्त यकद जिान हो सके तो भारत के विए एक स्िणिमय भविष्य पैदा ककया जा सकता है। अिर भारत का वचत्त बूढ़ा रहा तो भविष्य एक मरर्ट होिा, एक कविस्तान होिा, भविष्य एक जीवित, जीिंत नहीं हो सकता है। मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, मेरी बातों को मान िेना जरूरी नहीं हैं। क्योंकक केिि िे ही िोि अपनी बातों को मानने पर जोर देते हैं वजनकी बातें कमजोर होती हैं। मैं आपको वसर्ि इतना ही कहंिा कक मेरी बातों को सोचना, अिर उनमें कोई सच्चाई होिी तो िह सच्चाई आपको मनिा िेिी और अिर िे असमय होंिी तो अपने आप विर जाएंिी। मेरी बातों को मानने की कोई भी जरूरत नहीं हैं। मेरी बातों को सोच िेना कार्ी है। अिर आप सोचेंिे, विचारेंिे तो जो समय होिा िह आपको कदखाई पड़ सकता है और समय कदखाई पड़े तो जीिन में क्रांवत शुरू हो जाती ह ै और युिा वचत्त का जन्म प्रारंभ हो जाता है। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें। 10

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