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Atma Pooja Upanishad PDF

282 Pages·3.559 MB·Hindi
by  Osho
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आत्म-पूजा उपनिषद, भाग 1 (36 में से 18 प्रवचिों का प्रथम संकलि) प्रवचि-क्रम 1. उपनिषदों की परंपरा व ध्याि के रहस्य .................................................................................2 2. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................... 18 3. निवाासिााः अज्ञात के नलए द्वार ........................................................................................... 33 4. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................... 48 5. एक नस्थर मिाः प्रभु का द्वार ............................................................................................... 64 6. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................... 79 7. मि का ऊपर की ओर बहिा ............................................................................................ 100 8. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 115 9. "परमात्मा को क्या अर्पात ककया जा सकता है"!.................................................................. 134 10. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 147 11. परमात्मा की ओर--प्रकाश अथवा प्रेम के द्वारा.................................................................... 162 12. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 177 13. आत्म-स्वरूप से भावातीत की अिुभूनत ............................................................................. 194 14. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 208 15. साक्षी होिा : सब नवनियों का आिार ............................................................................... 221 16. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 235 17. चेतिा की पूरी निलावट की ओर ...................................................................................... 251 18. प्रश्न एवं उत्तर................................................................................................................. 265 1 आत्म-पूजा उपनिषद, भाग 1 पहला प्रवचि उपनिषदों की परंपरा व ध्याि के रहस्य ओम्। तस्य निनितिं ध्यािम। ओम्। उसका निरंतर स्मरण ही ध्याि है। इसके पूवा कक हम अज्ञात में उतरें, थोड़ी सी बातें समझ लेिी आवश्यक हैं। अज्ञात ही उपनिषदों का संदेश। जो मूल है, जो सबसे महत्वपूणा है, वह सदैव ही अज्ञात है। नजसको हम जािते हैं, वह बहुत ही ऊपरी है। इसनलए हमें थोड़ी सी बातें ठीक से समझ लेिा चानहए, इसके पहले कक हम अज्ञात में उतरें। ये तीि शब्द-ज्ञात, अज्ञात, अज्ञेय समझ लेिे जरूरी है सवाप्रथम, क्योंकक उपनिषद अज्ञात से संबंनित हैं केवल प्रारंभ की भांनत। वे समाप्त होते हैं अज्ञेय में। ज्ञात की भूनम नवज्ञाि बि जाती है; अज्ञात-दशािशास्त्र या तत्वमीमांसा; और अज्ञेय है िमा से संबंनित। दशािशास्त्र ज्ञात व अज्ञात में, नवज्ञाि व िमा के बीच एक कड़ी है। दशािशास्त्र पूणाताः अज्ञात से संबंनित है। जैसे ही कुछ भी जाि नलया जाता है वह नवज्ञाि का नहस्सा हो जाता है और वह किर किलॉसािी का नहस्सा िहीं रहता। इसनलए नवज्ञाि नजतिा बढ़ता जाता है, उतिा ही दशािशास्त्र आग े बढ़ा कदया जाता है। जो भी जाि नलया जाता है नवज्ञाि का हो जाता ह;ै और दशािशास्त्र नवज्ञाि व िमा के मध्य बीच की कड़ी है। इसनलए नवज्ञाि नजतिी तरक्की करता है, दशािशास्त्र को उतिा ही आगे बढ़िा पड़ता है; क्योंकक उसका संबंि केवल अज्ञात से ही है। परन्तु नजतिा दशािशास्त्र आग े बढ़ाया जाता है, उतिा ही िमा को भी आग े बढ़िा पड़ता है; क्योंकक मूलताः िमा अज्ञेय से संबंनित है। उपनिषद अज्ञात से प्रारंभ होते हैं, और वे अज्ञेय पर समाप्त होते हैं। और इस तरह सारी गलतिहमी िड़ी होती है। प्रोिेसर रािाडे िे उपनिषदों के दशाि पर एक बहुत गहि पुस्तक नलिी है, परन्तु वह प्रारंभ ही बिी रहती है। वह उपनिषदों की गहरी घाटी में प्रवेश िहीं कर सकती; क्योंकक वह दाशानिक ही रहती है। उपनिषदों की शुरुआत दशािशास्त्र से होती है, परन्तु वह मात्र एक शुरुआत ही है। वे िर्म में समाप्त होते हैं, अज्ञेय म ें समाप्त होते हैं। और जब मैं कहता ह ंअज्ञेय, तो मेरा तात्पया है वह जो कक कभी जािा िहीं जा सकता। कुछ भी प्रयत्न हो, ककतिा भी हम प्रयास करें, जैसे ही हम कुछ जािते हैं, वह नवज्ञाि का नहस्सा हो जाता है। नजस क्षण भी हम कुछ अज्ञात महसूस करते हैं, वह दशािशास्त्र का नहस्सा हो जाता है। नजस क्षण हम अज्ञेय का सामिा करते हैं, केवल तभी वह िमा होता है। जब मैं कहता हं अज्ञेय, तो मेरा आशय है उससे नजसे कभी जािा िहीं जा सकता; परन्तु उसका सामिा हो सकता है, उसे अिुभव ककया जा सकता है। उस े जीया भी जा सकता है। हम उसके आमिे-सामिे हो सकते हैं। उसका साक्षात्कार हो सकता है, परन्तु किर भी वह अज्ञेय ही रहता है। केवल इतिा ही अिुभव होता है कक अब हम एक गंभीर रहस्य में हैं, नजसे समझा िहीं जा सकता। इसनलए इसके पूवा कक हम इस रहस्य में उतरें, कुछ सूत्र समझ लेिे चानहए अन्यथा कोईप्रवेश संभव िहीं होगा। पहली बात तो यह है हम कैसे सुिते हैं; क्योंकक सुििे के भी कई आयाम होते हैं। आप अपिे बुनि से अपिे तका से सुि सकते हैं। यह एक तरीका है सुििे का, जो कक बहुत सामान्य है, बहुत सरल है और बहुत उथला, क्योंकक तका के साथ आप सदैव या तो बचाव करिे में लगे होते हैं या हमला करिे में। तका के साथ आप सदैव लड़ते हुए होते हैं। इसनलए जब कभी कोई कुछ भी तका से समझिे की कोनशश करता है, वह उससे लड़ता 2 है; केवल एक पररचय हो सकता है। गहि अथा तो िा जािे वाला है, क्योंकक गहि अथा के नलए बहुत सहािुभूनत के साथ सुििा अनिवाया है। तका कभी भी सहािुभूनत के साथ िहीं सुि सकता। वह तो बहुत तार्काक पृष्ठभूनम से सुिता है। वह कभी प्रेम से तो सुि ही िहीं सकता; वह तो असंभव है। इसनलए तका से सुििा ठीक है यकद तुम गनणत समझिे की कोनशश में हो, यकद तुम तकाशास्त्र सीि रहे हो, और यकद तुम कोई ऐसी बात या नवनि सीि रहे हो, जो पूरी तरह बुनिगत हो। अगर तुमिे कनवता को भी तका से सुिो, तो तुम किर अंिे हो जाओगे। यह ऐसा ही है जैसे कक कोई अपिे काि स े देििे का प्रयत्न करे अथवा अपिी आंिों से सुििे का प्रयत्न करे! तुम तका से कनवता को िहीं समझ सकते। इसनलए एक गहि समझ भी होती है या दूसरी तरह की समझ भी होती है, जो कक तका से िहीं होती बनकक होती है प्रेम से, अिुभूनत से, भाविा स,े हृदय से। तका सदैव ही द्वंद्व में होता है। तका कभी अपिे में ककसी भी चीज को आसािी से िहीं गुजरिे देता। तका को हराया जािा चानहए, केवल तभी कुछ भीतर प्रवेश कर सकता है। यह बुनि का एक सुरक्षा का इंतजाम है, यह अपिे को बचािे की एक नवनि है, एक सुरक्षा का सािि। यह हर क्षण साविाि रहता है, नबिा उस के जाि े कुछ भी गुजर िहीं सकता; और कुछ भी भीतर िहीं जा सकता नबिा तका को पछाड़े। और अगर तका हार भी जाए, तो भी वह चीज आपके हृदय तक िहीं जा सकती, क्योंकक हार में आप सहािुभूनतपूणा िहीं हो सकते। श्रवण का दूसरा आयाम है हृदय के द्वारा, भाविा के द्वारा। कोई संगीत सुि रहा है, तब ककसी नवश्लेषण की आवश्यकता िहीं है। सच ही, यकद आप एक आलोचक हैं तो आप कभी संगीत िहीं समझ पाएंगे। हां, हो सकता है कक आप उसका गनणत, उसकी छंद रचिा, भाषा आकद सब कुछ संगीत के बारे में समझ जाए, परन्तु संगीत को िहीं समझ पाएंगे, क्योंकक संगीत की नववेचिा िहीं की जा सकती। वह तो समग्र है। वह एक समग्रता है। यकद तुम नववेचिा करिे को एक क्षण भी ठहरे तो तुमिे बहुत कुछ िो कदया। वह एक बहती हुई समग्रता है। हां, कागजी संगीत की नववेचिा हो सकती है, परन्तु सच्चे संगीत की नववेचिा कभी भी िहीं हो सकती, जब कक वह चल रहा हो। इसनलए आप अलग िड़े हो सकते, तुम दशाक िहीं हो सकते; तुम्हें तो उसमें भागीदार होिा पड़ता है। यकद तुम उसमें भाग लेते हो, तभी तुम उसे समझ पाते हो। अतएव भाविा में समझिे का मागा हमारे स्वयं के भाग लेिे से होकर आता है। आप दशाि िहीं हो सकते। आप बाहर िड़े िहीं रह सकते। आप संगीत को एक वस्तु िहीं बिा सकते। तुम्हें तो उसके हाथ बहिा होता है; तुम्हें तो उसकी गहिता में पूणाताः डूब जािा होता है। ऐसे क्षण आएंगे जब कक तुम िहीं होओगे और वहां केवल संगीत ही होगा। वे क्षण नशिर के क्षण होंगे; वे क्षण ही संगती के क्षण होंगे। तब तुम्हारे भीतर गहरे में कुछ प्रवेश कर जाता है। यह श्रवण का गहि तरीका है, पर किर भी सवाानिक गहि िहीं। पहला ढंग है तका के द्वारा- बुनिगत; दूसरा है अिुभूनत के द्वारा-भावात्मक; तीसरा है स्वरूप के द्वारा-अनस्तत्वगत। जब आप अपिी बुनि से सुि रहे हैं, आप अपिे स्वरूप के एक नहस्से से सुि रहे हैं। किर जब आप अपिी भाविा के द्वारा सुि रहे हैं, तब किर आप अपिे स्वरूप के एक नहस्से से ही सुि रहे हैं। तृतीय, सवाानिक गहि, श्रवण का सबसे अनिक प्रामानणक ढंग है आपकी समग्रता-शरीर, मि, आत्मा सब नमलकर-एक एकत्व। यकद आप श्रवण से इस तृतीय ढंग को समझ लें, तभी आप उपनिषदों के रहस्य में प्रवेश कर पाएंगे। इस तृतीय श्रवण के नलए जो परंपरागत नवनि है, वह है-श्रिा। अतएव आप नवभाजि कर सकते हैंःाः बुनि के द्वारा समझिे के नलए नवनि है संशय की, शंका की; भाविा के द्वारा नवनि है प्रेम, सहािुभूनत; परन्तु स्वरूप के द्वारा नवनि है श्रिा; क्योंकक यकद आप अज्ञात में प्रवेश कर रहे हैं। तो आप शंका कैसे कर सकते हैं? 3 आप ज्ञात के प्रनत संदेह कर सकते हैं। नजसे आप नबककुल िहीं जािते, उसके प्रनत संदेह भी कैसे ककया जा सकता है? संदेह ठीक है यकद वह ज्ञात से संबंनित है। अज्ञात से संदेह असंभव ही है। आप अज्ञात कोप्रेम भी कैसे कर सकते ह?ैं आप ज्ञात को ही प्रेम कर सकते हैं। आप अज्ञात कोप्रेम िहीं कर सकते; आप अज्ञात से कोई संबंि स्थानपत िहीं कर सकते। यह संबंि असंभव है। आप उससे संबंनित िहीं हो सकती ह;ैं आप उसमें घुलनमल सकते हैं-वह दूसरी बात है; परन्तु आप उससे संबंनित िहीं हो सकते। आप उसके प्रनत समर्पात हो सकते हैं, पर संबंनित िहीं। और समपाण संबंि िहीं है। वह संबंि जरा भी िहीं है। वह तो मात्र दो का, द्वैत का घुलनमल जािा है। अतएव बुनि के साथ द्वैत होता है। आप दूसरे के साथ संघषा रत होते हैं। परन्तु स्वरूप के साथ द्वैत नतरोनहत हो जाता है। ि तो आप संघषा में होते हैं और ि प्रेम में-आप जरा भी जुड़े िहीं होते। इस तीसरे को परंपरा के अिुसार श्रिा, िेथ कहते हैं। और जहां तक अज्ञात का संबंि है, श्रिा ही कुंजी है। यकद कोई कहता है, मैं कैसे नवश्वास करूं ? तब वह समझ िहीं रहा है। तब वह किर बबंदु को चकू रहा है। श्रिा नवश्वास किर एक बुनिगत बात है। आप नवश्वास कर सकते हैं, आप नवश्वास िहीं भी कर सकते हैं। आप नवश्वास कर सकते हैं, क्योंकक आपके पास नवश्वास करिे के नलए तका हैं। आप नवश्वास िहीं भी कर सकते हैं, क्योंकक आपके पास अनवश्वास करिे के नलए तका है। नवश्वास तका से ज्यादा गहि कभी िहीं है। इसनलए आनस्तक, िानस्तक, नवश्वास ही उथली सतह के लोग हैं। श्रिा नवश्वास िहीं है, क्योंकक अज्ञात के नलए ऐसा कुछ भी िहीं है, जो कक पक्ष अथवा नवपक्ष में हो। ि तो आप नवश्वास कर सकते हैं, और ि अनवश्वास कर सकते हैं। तो किर क्या करिे के नलए बाकी रहा? या तो आप उसके प्रनत िुले हो सकते हैं या बंद रह सकते हैं। यह नवश्वास अथवा अनवश्वास का प्रश्न ही िहीं है। यह केवल उसके प्रनत िुले अथवा बंद रहिे का प्रश्न है। यकद तुम्हें श्रिा है, तो तुम िुले हो। यकद तुम्हें श्रिा िहीं है, तो तुम बंद रहते हो। यह तो मात्र एक कुंजी है। यकद आप अज्ञात के प्रनत िुलिा चाहे, तो आपको श्रिा होिी चानहए। यकद आप उसके प्रनत िुले, रहिा िहीं चाहते, तो आप बंद रह सकते हैं; परन्तु कोई भी आपके अलावा िहीं चकू रहा है। कोई भी इससे िुकसाि कोप्राप्त िहीं हुआ नसवा आपके। आप ही बंद रह गए एक बीज की भांनत। एक बीज को टूटिा होता है-मरिा होता है। केवल तभी वृक्ष पैदा होता है। परन्तु बीज िे वृक्ष को कभी भी िहीं जािा। बीज की मृत्यु केवल श्रिा में ही हो सकती है। वृक्ष अज्ञात है और बीज कभी भी वृक्ष से िहीं नमल पाएगा। बीज भय के कारण, मृत्यु के भय के कारण बंद रह सकता है। तब बीज बीज ही रह जाएगा और आनिर में मर जाएगा, नबिा दुबारा जन्मे। लेककि यकद बीज श्रिापूवाक मर जाए, ताकक अज्ञात उसकी मृत्यु में से जन्म ले सके, तभी केवल वह िुल सकता है। एक तरह से वह मर जाता है, परन्तु एक तरह से वह दुबारा जन्म पाता है-बहुत बड़े रहस्यों में। जन्म पाता है ऊंचे जीवि में। यह घटिा श्रिा में घटती है। इसनलए यह नवश्वास िहीं है। इसे कभी भी नवश्वास समझिे की िासमझी ि करें। यह भाविा भी िहीं है। यह दोिों से ज्यादा गहरी है। यह आपकी समग्रता है। अतएव कैसे कोई अपिी समग्रता में सुिे-नबिा बुनि के दुराग्रह में अटके और नबिा भाव के सहमत हुए अथवा सहािुभूनतपूणा हुए, वरि अपिे स्वरूप की समग्रता में? कैसे यह समग्रता काया करती है? क्योंकक हम तो केवल अलग-अलग अंगों का ही काम जािते हैं। हम तो िहीं जािते कक समग्रता कैसे काया करती है। हमें मात्र नहस्सों का ही पता है-यह अंग, यह नहस्सा काम कर रहा है; वह अंग काम कर रहा है। बुनि काम कर रही है; 4 हृदय काम कर रहा है; पांव चल रहे हैं, आंिें देि रही हैं। हम केवल अंगों को जािते हैं। समग्रता कैसे काम करती है? समग्रता काम करती है अपिी गहिता निनरक्रयता में। कुछ भी सकक्रय िहीं; सब कुछ चपु है। आप कुछ भी िहीं कर रहे हैं। आप नसिा यहां है, मात्र उपनस्थत और द्वार िुल जाता है। केवल तभी आप समझ पाएंगे कक उपनिषदों का क्या संदेश है। इसनलए िाली उपनस्थनत चानहए; अपिी तरि से कुछ भी िहीं करिा, कोई काम िहीं। यही मतलब है समग्र रूप स े तत्पर होिे का-मात्र उपनस्थनत। मैं इसे थोड़ा और स्पष्ट कर दंू कक मात्र उपनस्थनत से मेरा क्या तात्पया है। यकद ककसी के प्यार में पड़े हैं तो कभी ऐसे क्षण आत े हैं, जब कक आप कुछ भी िहीं कर रहे होते हैं। आप मात्र उपनस्थनत होते हैं अपिे प्रेम या प्रेनमका के पास-मात्र उपनस्थत-नबककुल मौि, यहां तक कक एक दूसरे कोप्रेम भी िहीं कर रहे होते हैं-मात्र उपनस्थत। तब एक नवनचत्र घटिा घटती है। सािारणताः हमारा अनस्तत्व रेिा म ें चलता है। हम एक रेिा में जीते हैं, एक कड़ी में जीते हैं। मेरा अतीत, मेरा वतामाि, मेरा भनवरय-यह एक रेिा है। आप एक रास्ते पर चलते हैं, मैं एक रास्ते पर चलता हं। हमारे अपिे रास्ते हैं-रेिाबि रास्ते। वास्तव में, हम कभी िहीं नमलते। हम समािांतर रेिाएं हैं, नजिका नमलिा संभव िहीं। यहां तक कक यकद हम बहुत लोगों से नघरे हों तो भी कोई ककसी से नमलता िहीं; क्योंकक तुम अपिे मागा पर हो और मैं अपिे मागा पर। तुम अपिे अतीत से आए हो और मैं अपिे अतीत से। मेरा वतामाि मेरे अतीत से निकला है, तुम्हारा वतामाि तुम्हारे अतीत से निकला है। तुम्हारा भनवरय तुम्हारे अतीत व वतामाि से अदभुत पररणाम होगा और मेरा भनवरय मेरे वतामाि का पररणाम होगा। अतएव हम मागा पर चलते हैं-रेिा बि मागों पर, एक सीिी रेिा वाले मागों पर। वहां कोई नमलि संभव िहीं है। केवल प्रेम नमलते हैं, क्योंकक अचािक जब तुम ककसी के पास मात्र उपनस्थत होते हो; समय का दूसरा ही आयाम पैदा होता है। आप दोिों एक क्षण में नमलते हैं और यह क्षण ि आपके प्रेमी का है और ि आपका। यह कुछ ऐसा है, जो िया है। यह ि तो आप े अतीत से आया है और ि आपके प्रेम के अतीत से। समय एक नभन्न ही आयाम में मुड़ जाता है। यह रेिा बि िहीं है; अतीत से भनवरय में जाता हुआ िहीं, वरि एक का वतामाि दूसरे के वतामाि में; और दो वतामाि क्षणों का नमलि होता है-एक नबककुल ही िया आयाम। इस आयाम को शाश्वतता का आयाम कहते हैं। प्रेनमयों िे कहा है कक प्यार का एक क्षण भी अपिे में एक शाश्वतता है। वह अंतहीि है; कभी ितम िहीं होता है। उसका कोई भनवरय िहीं है, उसका कोई अतीत िहीं है। वह तो मात्र उपनस्थत है-अभी और यही। यही मेरा तात्पया है जब कक मैं कहता हं कक यकद आप ि तो अपिे अतीत के साथ और ि ही भनवरय के साथ, बनकक ऐसे एक पूणा समग्रता के साथ कक वतामाि क्षण में केवल आपकी उपनस्थनत भर हो-यकद आप शांनत से सुि सके, अकक्रया में, यकद आप केवल उपनस्थत हो सके अभी और यहां, तो केवल यह क्षण ही पयााप्त है, नजसमें एक िया आयाम िुलता है और उपनिषदों का संदेश केवल उसी आयाम में भीतर प्रवेश कर सकता है। यही अथा है जबकक यह कहा जाता है कक उपनिषदों का संदेश शाश्वत है। इसका अथा स्थायी िहीं है। इसका इतिा ही अथा है कक यह समय का एक नबककुल िया आयाम है, नजसमें कक कोई भनवरय व कोई अतीत िहीं होता। इसनलए आपको एक दूसरे ढंग स े चलिा पड़ेगा-आपके आंतररक समय में। और आंतररक पररवताि के साथ, शब्द एक दूसरी ही आकृनत लेिा शुरू करते हैं, और एक नभन्न महत्व उिमें से उत्पन्न होता है। हम शब्द वही काम में लेते हैं। प्रत्येक वही शब्द काम में लेता है, परन्तु अलग-अलग मि के साथ शब्द के अथा भी अलग-अलग हो जाते हैं। उदाहरण के नलए एक डाक्टर एक रोगी से पूछता है-कैसे हैं आप? सड़क पर 5 ककसी के आकनस्मक नमलि पर आप पूछते हैं-कैसे हैं आप? एक प्रेमी अपिी प्रेयसी से पूछता है-कैसी हैं आप? शब्द तो वही हैं, परन्तु क्या अथा भी वही ह?ै क्या जब एक डाक्टर अपिे रोगी से पूछता है-कैसे हैं आप? और एक प्रेमी अपिी प्रेनमका से पूछता है-कैसी ह ैं आप? तो क्या बात एक ही है? एक नबककुल िई बात पैदा होती है तब, एक महत्वपूणा बात। उपनिषदों को सािारण ढंग से िहीं समझा जा सकता। िहीं कारण है कक शास्त्री सारी बात ही चकू जात े हैं। भाषाशास्त्री भी सब कुछ चकू जाते हैं। पंनडत भी सारी बात चकू जाते हैं। वे भाषा के साथ, व्याकरण के साथ वे उस सबके साथ जो कुछ भी महत्वपूणा है मेहित करते हैं, परन्तु किर चकू जाते हैं। क्यों चकू जाते हैं वे? यह चूकिा इसनलए होता है, चूंकक उिका आंतररक समय रेिा में चलिे वाला होता है। वे अपिी बुनि से काया कर रहे होते, ि कक अपिे स्वरूप से। वास्तव में, वे उपनिषदों पर काम कर रहे होते हैं; वे उपनिषदों को अपिे ऊपर काम िहीं करिे देते। यही तात्पया है मेरा जब मैं मात्र उपनस्थत होिे के नलए कहता हं-तब ही उपनिषद आप पर काम कर सकते हैं। और वह एक रूपांतरण हो सकता है। वह आपके अनस्तत्व के दूसरे तलों में ले जा सकता है। इसनलए पहली बात जो याद रििे योग्य है वह है कैसे सुििा-मात्र आपकी उपनस्थनत से-अपिी पूरी श्रिा से उिमें डूब जािा। तका से ि लड़े। भाविा को महसूस ि करें-बस, अपिे स्वरूप के साथ एक हो जाए। यही कुंजी है-यही सबसे पहली बात है। दूसरी बात जो है वह है कक उपनिषद भी शब्दों का उपयोग करते हैं। उन्हें उपयोग करिा पड़ता है, परन्तु वे स्वयं मौि के नलए हैं। वे बात करते हैं और वे लगातार बात करते हैं, परन्तु वे मौि के नलए बात करते हैं। ऐसा प्रयत्न बेकार है-नवरोिी है, नवपरीत है, असंगत है-परन्तु किर भी केवल इसी तरह से एकमात्र संभाविा है। यही एकमात्र रास्ता है। यहां तक कक मुझे भी यकद आपको मौि के नलए उत्प्रेररत करिा हो, तो मुझे भी शब्द ही काम म ें लेिे पड़ते हैं। उपनिषद शब्द काम म ें लेते हैं, परन्तु वे शब्दों के पूरे निलाि हैं; वे उिके नलए हैं ही िहीं यह बात लगातार याद रििा है अन्यथा बहुत संभव है कक हम शब्दों में िो जाए। शब्दों का अपिा जादू है; उिका अपिा चुंबकीय पि है। और प्रत्येक शब्द अपिी श्रंिला निर्मात करता है। उपन्यासकार जािते हैं; कनव जािते हैं। वे कहते हैं कक कई बार ऐसा होता है कक वे केवल अपिे उपन्यास कोप्रारंभ करते हैं। जब वह समाप्त होता है, वे िहीं कह सकते कक उन्होंिे उसे समाप्त ककया है। सचमुच, शब्दों की अपिी एक श्रंिला है। वे अपिी तरह स े जीिे लगते हैं और आगे चलिे लगते हैं, परन्तु मैं कभी समाप्त िहीं करता। और कई बार मेरे चररत्र ऐसी बातें कहते हैं, जो मैंिे कभी िहीं चाहा कक वे कहें! वे अपिा एक अलग जीवि लेिा प्रारंभ करते हैं और वे अपिे रास्ते चले जाते हैं। वे स्वतंत्रता हो जाते हैं लेिक से, कनव से। वे ऐसे स्वतंत्र हो जाते हैं जैसे कक बच्चे अपिे माता-नपता से हो जाते हैं। उिकी अपिी एक बजंदगी होती है। इसनलए शब्दों का अपिा तका होता है। एक शब्द का उपयोग करें और आप एक रास्ते पर होंगे; और शब्द बहुत सी बातें पैदा करेगा। शब्द स्वयं बहुत सी बातें उत्पन्न करेगा और कोई भी उिमें िो सकता है। परन्तु उपनिषद शब्दों के नलए िहीं हैं। इसनलए वे नजतिे कम हो सकें उतिे कम शब्द काम में लेते हैं। उिका संदेह इतिा टेलीग्राकिक है कक एक भी शब्द बेकार काम में िहीं नलया गया है। उपनिषद अनिक से अनिक संनक्षप्त सूत्र हैं। एक शब्द भी निरथाक िहीं है। और शब्द भी सम्मोहि की िारा पैदा कर सकते हैं। परन्तु शब्दों को तो काम म ें लेिा ही पड़ेगा। इसनलए, ध्याि रहे कक आप मात्र शब्दों में ही ि िो जाएं। 6 शब्दों का अथा कुछ नभन्न बात है; और उससे भी ज्यादा अच्छा होगा यकद कहें कक उिका महत्व। उपनिषद शब्द को नचन्हों, इशारों की भांनत काम में लेते हैं। वे शब्दों का उपयोग कुछ कदिािे के नलए करते हैं ि कक कुछ कहिे के नलए। आप अपिे शब्दों से कुछ कह सकते हैं, आप अपिे शब्दों से कुछ कदिला सकते हैं। जब आप कुछ कदिला रहे हैं, तो शब्द से परे जािा पड़ेगा, शब्द को भूल जािा पड़ेगा। अन्यथा शब्द ही आंिों में तैरिे लगते हैं और वे सारे दशाि को नबगाड़ देते हैं। हम शब्दों का उपयोग करते हैं, परन्तु साविािी के साथ। सदैव स्मरण रिें कक मात्र अथा ही मतलब िहीं है, बनकक वे इशारे हैं। सांकेनतक रूप से उिका उपयोग ककया गया ह,ै जैसे कक उंगली उपयोग चांद की ओर इशारा करिे के नलए। उंगली चांद िहीं है, परन्तु कोई चाहे तो उंगली से नचपक सकता है और कह सकता ह ैकक मेरे गुरु िे इसी को चांद बतलाया है! उंगली चांद िहीं है, परन्तु उंगली का कदिलािे के नलए उपयोग ककया जा सकता है। शब्द कभी भी सत्य िहीं है; पर शब्दों का उपयोग ककया जा सकता है कदिलािे के नलए। इसनलए सदैव याद रिें कक उंगली को भूल जाता है। यकद उंगली ज्यादा महत्व की और ज्यादा कीमती बात हो गई चांद से, तो किर सारी बात ही नवकृत हो जाएगी। इस दूसरे बबंदु को स्मरण रिें। शब्द केवल संकेत हैं ककसी उसके, जो कक शब्दहीि है, जो कक मौि है, जो कक पार है, जो कक सबका अनतक्रमण है। इसकी नवस्मृनत कक शब्द ही वास्तनवकता िहीं है, इसिे बहुत गड़बड़ पैदा की है। हजारों-हजारों नववेचिाएं उपलब्ि ह,ैं परन्तु वे सब शब्द से संबंनित हैं-ि कक शब्द रनहत वास्तनवकता से। वे हजारों-लािों वषों तक वाद-नववाद करते रहते हैं। पंनडतों िे बहुत नववाद ककया है कक इस शब्द का क्या अथा है और उस शब्द का क्या अथा है! और इस तरह एक बहुत बड़ा सानहत्य निर्मात कर कदया है। उसके अथा की इतिी िोज हुई है जो कक पूरी तरह अथा हीि है। वे मुख्य बात को ही चकू गए। शब्दों का अथा वास्तनवकता कभी िहीं था-वे तो केवल संकेत थे, उसके तरि जो कक शब्दों से नबककुल ही नभन्न है। तीसरी बात यह है कक मैं उपनिषदों पर आलोचिा करिे िहीं जा रहा, क्योंकक आलोचिा केवल बुनि से संबंनित हो सकती है। मैं तोप्रनतसंवेदि करिे जा रहा हं बजाय आलोचिा करिे के। प्रनतसंवेदिा दूसरी ही चीज है-नबककुल ही नभन्न बात है। आप एक घाटी में सीटी बजाते हैं अथवा एक गीत गाते हैं अथवा बांसुरी बजाते हैं और वह घाटी प्रनतध्वनि करती है-प्रनतध्वनि करती है-और किर प्रनतध्वनि करती है। घाटी आलोचिा िहीं कर रही, घाटी नसिा प्रनतसंवेदिा कर रही है। प्रनतसंवेदि एक जीवंत बात है, आलोचिा मृत होिे वाली है। मैं उस पर आलोचिा िहीं करूं गा। मैं तो मात्र एक घाटी बि जाऊंगा और प्रनतध्वनि करूं गा। इसे समझिा करठि होगा, क्योंकक यहां तक कक प्रनतध्वनि प्रामानणक भी हो, तो भी आप वही ध्वनि िहीं पकड़ सकेंगे। आपकोवही ध्वनि लौटकर प्राप्त िहीं होगी। आपको उसमें कुछ संगनत िहीं भी नमले; क्योंकक जब कभी एक घाटी प्रनतसंवेदि करती है, जब कभी वह कुछ भी प्रनतध्वनित करती है, वह प्रनतध्वनि कोई निनरक्रय प्रनतध्वनि िहीं होती, बनकक वह कक्रयात्मक होती है। घाटी कािी कुछ उसमें, जोड़ देती है। घाटी का अपिा स्वभाव कािी कुछ जोड़ देता है। एक नभन्न घाटी नभन्न तरीके से प्रनतध्वनि करेगी। ऐसा ही होिा चानहए। इसनलए जब मैं कुछ कहता हं, उसका यह अथा िहीं होता कक प्रत्येक को वही कहिा होगा। यह ऐसा है, जो मेरी घाटी प्रनतध्वनि करती है। मुझे स्टीवेि की पंनियां याद आती ह,ैं जो कक एक झेि कनवता की तरह हैं। बीस आदमी एक पुल को पार कर रहे हैं एक गांव के भीतर अथवा बीस आदमी बीस पुलों को पार कर रहे हैं बीस गांवों में! जब मैं कुछ पढ़ता हं और मेरी घाटी ककसी नवशेष ढंग से प्रनतध्वनि करती है, तो वह निनरक्रय िहीं होती। उस प्रनतध्वनि में मैं भी 7 उपनस्थत होता हं। जब आपकी घाटी किर से प्रनतध्वनि करेगी, तो वह दूसरी ही बात हो जाएगी। जब मैं एक जीवंत प्रनतसंवेदि कहता हं, तो मेरा मतलब इससे ही है। कभी-कभी यह नबककुल ही असंगत लगे; क्योंकक घाटी उसे एक रूप प्रदाि कर देती है, एक अपिा ही रंग दे देती है। यह स्वाभानवक है। इसनलए मैं कहता हं कक आलोचिाएं बड़ी अपरािपूणा हैं। केवल प्रनतसंवेदि होिे चानहए, कोई आलोचिा िहीं; क्योंकक आलोचक यह महसूस करिे लगता है कक जो कुछ वह कह रहा है, वह पूणाताः सत्य है। एक आलोचक महसूस करिे लगता है कक दूसरी आलोचिाएं गलत हैं, और दूसरों की आलोचिाओं को काटिा उसका स्व-आरोनपत कताव्य है, क्योंकक वह सोचता है कक उसकी आलोचिा तभी सही हो सकती है, जबकक दूसरों की आलोचिा गलत हो। लेककि प्रनतसंवेदि के साथ ऐसा िहीं होता; हजारों प्रनतसंवेदि संभव हो सकते हैं। और प्रत्येक प्रनतसंवेदि सही है यकद वह प्रामानणक है। यकद वह आपकी गहिता से आती है, तो वह सही है। क्या सही है और क्या गलत है, इसका कोई कुलों निणाायक िहीं है। यकद कुछ आपके भीतर से आपकी गहिता से आता है, यकद आप उसके साथ एक हो जाते हैं, यकद वह आपके पूणा स्वरूप में से झंकृत हो रहा है, तो वह सही है। अन्यथा ककतिा ही होनशयार, व ककतिा ही तकायुि क्यों ि हो, वह गलत होता है। यह एक प्रनतसंवेदि होिे वाला है। और जब मैं इसे प्रनतसंवेदि कहता हं, तो यह एक कनवता की तरह अनिक और एक किलॉसािी की तरह कम होगा। यह कोई पिनत िहीं होगी। आप पिनतयां निर्मात िहीं कर सकते प्रनतसंवेदिों से; प्रनतसंवेदि आणनवक होते हैं, िंड-िंड। उिमें आंतररक एकता होती है, परन्तु उस आंतररक एकता को िोजिा इतिा आसाि िहीं। वह एकता एक टाप,ू और एक अंतदेश की तरह होती है। एक टाप,ू और एक अंतदेश में एकता होती है और बहुत गहरे, बहुत गहरे समुद्र की गहराई में जमीि एक होती है। यकद यह बात समझ में आ जाए तो कोई आदमी एक टाप ू िहीं होता। गहरे में, चीजें एक हैं; नजतिे गहरे आप जाते ह,ैं उतिे ही अनिक आप ऐक्यता को पाते हैं। इसनलए यकद एक प्रनतसंवेदि प्रामानणक है, तो किर कोई भी प्रनतसंवेदि जो कक चाहे नबककुल नवरोिी कदिता हो, नभन्न िहीं हो सकता-िाचे गहराई में एकता होगी। परन्तु िीचे गहरे उतरिा पड़े। और आलोचिाए बहुत ऊपरी चीजें होती हैं। इसनलए मैं आपको कोई आलोचिा िहीं दे रहा। मैं तो कहंगा कक इस उपनिषद का क्या अथा है। मैं नसिा इतिा ही कहंगा कक इस उपनिषद का मेरे नलए, मुझमें क्या अथा है। मैं कोई दावा िहीं कर सकता; और जो लोग भी दावा करते हैं, वे अिैनतक लोग हैं। कोई भी िहीं कह सकता कक इस उपनिषद का क्या अथा होता है। अनिक से अनिक इतिा ही कहा जा सकता है कक इस उपनिषद का मेरे भीतर क्या अथा होता है-यह मेरे भीतर कैसे गूंजता है। ऐसा प्रनतसंवेदि आपके भीतर भी प्रनतसंवेदिा उत्पन्न कर सकता है, यकद आप केवल यहां उपनस्थत हों। तब जो भी मैं कहंगा, वह आपके भीतर भी प्रनतध्वनित होगा। और यकद वह प्रनतध्वनित हो, तभी केवल आप उस े समझ करें। इसनलए मात्र एक घाटी की तरह हो जाएं, अपिे को छोड़ दें, ताकक आप स्वतंत्रता से प्रनतध्वनि कर सकें। अपिे से एक घाटी की भांनत ही संबंनित हों बजाय उपनिषद की भाषा के अथवा उसके जो मैं कह रहा हं। बस, अपिे से एक घाटी की तरह संबंनित हों और बाकी सब अपिे आप आएगा। ककसी तिाव की आवश्यकता िहीं, कोईबिंचे हुए प्रयत्न की जरूरत िहीं मुझे समझिे के नलए। वह रुकावट बािा बि जाएगी। मात्र आराम में हो जाएं। मात्र मौि व अकक्रया में हो और जो भी होता हो उस े अपिे में गूंजिे दें। वे सारी गुंजारें, झंकारें आपको एक दूसरे ही आयाम में ले जाएगी, एक दूसरे ही दशाि को ले जाएंगी। 8 अंनतम बात, मैं ि तोबहंदू हं, ि मुसलमाि हं, और ि ही ईसाई हं। मैं एक बेघरबार घुमक्कड़ हं। मैं उपनिषदों की परंपरा से बाह्य रूप से जुड़ा हुआ िहीं हं, इसनलए मेरा उपनिषदों में कुछ लगाया हुआ, व्यस्त स्वाथा िहीं है। जब कोईबहंदू आलोचिा करता है अथवा जब भी कोईबहंदू उपनिषदों के बारे में सोचता है, तब उसका उसमें कुछ इिवेस्टमेंट होता है, लगाया हुआ होता है। जब एक मुसलमाि उपनिषदों के नलए नलिता है, तो उसके नवरोि में उसका कुछ लगाया हुआ होता है। वे दोिों ही सही व प्रामानणक िहीं हो सकते। यकद कोईबहंदू है, तो वह उपनिषदों के बाबत सच्चा िहीं हो सकता; यकद कोई मुसलमाि है, तो वह भी उपनिषदों के बार म ें सच्चा िहीं हो सकता। वह झूठा होगा ही। परन्तु यह िोिा इतिा सूक्ष्म होता है कक इसका हमें पता ही िहीं चलता। आदमी अकेला ऐसा प्राणी है जो कक अपिे से ही झूठ बोल सकता है और िोिों में जी सकता है। यकद आप बहंदू हैं और उपनिषदों के बारे में सोच रहे हैं, या आप मुसलमाि हैं और कुराि के बारे में सोच रहे हैं, अथवा ईसाई हैं और बाइनबल के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको कभी पता ही िहीं चलेगा कक आप कभी सच्च े िहीं हो सकते। ककसी को ककसी का ि होिा पड़े, केवल तभी प्रनतसंवेदि सच्चा हो सकता है। जुड़ा होिा गड़गड़ी करता है और मनस्तरक को नवकृत कर देता है और ऐसी बातें कदिलाता है, जो कक हैं ही िहीं अथवा मिा कर देता ह ै उन्हें जो कक हैं। इसनलए मेरे नलए वह मुसीबत िहीं है। आपके नलए भी मेरा सुझाव है कक जब भी आप कुराि पढ़ रहे हों, या उपनिषद सुि रहें हों, अथवा बाइनबल-तोबहंदू ि हों, ईसाई ि हों या मुसलमाि नबककुल ि हों। मात्र होिा पयााप्त है। आप गहरे में उतरिे में समथा हो सकेंगे। मतों के साथ, नसिांतों के साथ, आप कभी िुले िहीं रह सकते। और एक बंद कदमाग समझ के िोिे कर सकता है, लेककि कभी कुछ समझ िहीं सकता। इसनलए मैं ककसी का भी िहीं हं। और यकद मैं इस उपनिषद के प्रनत प्रनतसंवेदि करता हं। वह केवल इसनलए कक मैं इसके प्रेम में पड़ गया हं। यह जो सब स े छोटा उपनिषद है आत्म-पूजा, यह एक बहुत ही अपूवा घटिा है। इसनलए थोड़ा इस अिोिे उपनिषद के बारे में-कक मैंिे क्यों इसको नवषय रूप में बोलिे के नलए चुिा है? प्रथम-यह सब से छोटा है; यह नबककुल बीज की तरह है-प्रबल, नवशेष-नजसमें सब कुछ भरा हो। प्रत्येक शब्द एक बीज है, नजसमें कक अिंत संभाविाएं हैं। इसनलए आप अिंतकाल के नलए ध्वनि व प्रनतध्वनि पैदा कर सकते ह,ैं और नजतिा आप इसके बारे में सोचते हैं उतिा ही आप इसे गहरे में जािे देिे में मदद करते हैं, व िए- िए अथा इसमें से प्रकट होते हैं। ये जो बीज की तरह शब्द हैं, ये गहरे मौि में पाए जाते हैं। सच ही यह बड़ा अजीब लगता है, परन्तु यह एक तथ्य है। यकद आपके पास बहुत कम कहिे के नलए हो, तो ही आप ज्यादा कहेंगे। और यकद आपके पास वास्तव में ही कुछ कहिे के नलए है, तो आप उसे कुछ ही पंनियों में, कुछ ही शब्दों में-यहां तक कक एक ही शब्द में कह सकते हैं। नजतिा कम आपको कहिा हो, उतिे ही अनिक शब्दों का उपयोग आपको करिा पड़ेगा। नजतिा अनिक आपको कहिा है, उतिे ही कम शब्दों का आपको उपयोग करिा होता है। यह अब मिोवैज्ञानिकों के नलए जािी-मािी बात हो गई है। कक शब्द कुछ बोलिे के नलए काम में िहीं नलए जाते, बनकक कुछ नछपािे के नलए काम में नलए जाते हैं। हम बोलते चले जाते हैं, क्योंकक हमको कुछ नछपािा है। यकद आप कुछ नछपािा चाहते ह ैं तो आप चपु िहीं रह सकते-क्योंकक आपका चेहरा उसे बोल देगा- आपकी चुप्पी उसे झंकारें कर देगी। अन्य शंकातुर हो सकते हैं कक आप कुछ नछपा रहे हैं। आप शब्दों के द्वारा िोिा दे सकते हैं; मौि के द्वारा आप िोिा िहीं दे सकते। 9 उपनिषदों के पास वास्तव में ही कुछ कहिे के नलए है, इसनलए वे उसे बीज रूप में कहते हैं-सूत्रों में, छोटे-छोटे सूत्रों में। इस उपनिषद में केवल सत्रह सूत्र है। उन्हें आिे पृष्ठ पर नलिा जा सकता है; एक पोस्टकाडा के एक साइड में ही इस पूरे उपनिषद को नलिा जा सकता है। पर यह एक बहुत ही महत्वपूणा संदेश है। इसनलए हम हर एक शब्द बीज को लेंगे और उसके भीतर प्रवेश करिे का प्रयत्न करेंगे-एक जीवंत संवेदि में उसके प्रनत होिे की कोनशश करेंगे। आपके भीतर हो सकता है कुछ तरंनगत होिे लगे, ऐसा प्रारंभ हो सकता है; क्योंकक ये शब्द बहुत ही प्रबल, शनि पूणा हैं। इिमें बहुत कुछ भरा है; यकद इिके अणुओं को तोड़ा जा सके, तो बहुत बड़ी तादाद में ऊजाा निकलेगी। इसनलए िुले रहें; ग्राहक, गहरी श्रिा से भरे हुए रहें और इस उपनिषद को अपिा काम करिे दें। अब हम आत्म पूजा उपनिषद में प्रवेश करते हैं। ओम ध्याि है इसका सतत स्मरण करिा। ओम्-ओम्-यह शब्द बहुत कीमती है-महत्वपूणा है एक संकेत की भांनत, इशारे की तरह वे गुप्त कुंजी की तरह। इसनलए सवाप्रथम इसे ही िोलें। ओम में पांच मात्राएं हैं। पहली मात्रा है अ; दूसरी है ओ; तीसरी है म्। ये तीि स्थूल चरण हैं। जब हम ओम शब्द को बोलते हैं, तो ये तीि अक्षर होते हैं। परन्तु ओम का उच्चारण करें और अंत में जो म आता है वह मण्ः्मण्ः्म गुंजररत होगा। वह आिी मात्रा है-चौथी। तीि स्थूल हैं और सुिी जा सकती हैं। चौथी आिी स्थूल है। यकद आप कािी सजग ह ैं तो ही यह सुिी जा सकेगी अन्यथा यह िो जाएगी। और पांचवी कभी िहीं सुिी जाती। जब कक ओम शब्द का गुंजार होता है, तो वह गुंजार ब्रह्म के शून्य में प्रवेश कर जाती है। जबकक ओम की ध्वनि चली जाती है और ध्वनिशून्यता बच रहती है, वही पांचवीं मात्रा है। आप ओम का उच्चारण करते हैं, तब अ-ओ-म बड़े स्पष्ट सुिाई पड़ते हैं, तब एक पीछे चला आता मण्ः्मण्ः्म की आिी मात्रा और तब उसके बाद ध्वनिशून्यता। वही पांचवीं है। यह जो पांचवीं है, केवल इशारा है, बहुत सी चीजों की ओर। प्रथम, उपनिषदों का जाििा है कक मिुरय की चेतिा पांच भागों में बंटी है। हम मोटी-मोटी तीि को जािते हैं-जागरण, स्वप्न गहरी निद्रा। ये तीि मोटे-मोटे चरण है-अ-ओ-म। उपनिषद चतुथा को तुरीय कहते हैं। उन्होंिे उसका कोई िाम िहीं कदया, क्योंकक वह कुछ बड़ी मात्रा िहीं। चौथा वह है जो कक गहरी िींद के प्रनत भी सजग रहता है। यकद आप गहरी निद्रा म ें थे, गहरी स्वप्नरनहत निद्रा मैं, तो सुबह आप कह सकते हैं, मैं गहरी, बहुत गहरी िींद में था। कोई आपके भीतर जागता था और अब स्मरण करता है कक बहुत गहरी स्वप्नरनहत िींद थी। एक साक्षी वहां मौजूद था। वह साक्षी ही चौथे के िाम से जािा जाता है। परन्तु उपनिषद कहते हैं कक वह चौथा भी अंनतम िहीं है, क्योंकक साक्षी होिा भी अभी अलग होिा है। इसनलए जब वह साक्षी भी नमट जाता है, केवल तभी अनस्तत्व बचता है नबिा साक्षी के-वही पांचवीं है। इसनलए यह ओम बहुत सी चीजों के नलए नचन्ह ह-ै बहुत सी चीजों के नलए-मिुरय के पांच शरीरों के नलए। उपनिषद उन्हें इस तरह बांटते हैं-अन्नमय, प्राणमय, मिोमय, नवज्ञािस्य व आिंदमय-पांच कोष हैं-पांच शरीर। यह ओम ब्रह्म का नचन्ह है। यह केवल एक नचन्ह ह,ै लेककि यह एक संकेत भी है। इसका क्या अथा है, जबकक मैं कहता हं कक यह संकेत भी है? जब कोई अनस्तत्व में गहरे जाता है जड़ों तक, बहुत गहरे, तो वहां नवचार िहीं होते। नवचार करिे वाला भी वहां िहीं होता। नवषय-बोि भी वहां िहीं होता, और ि कताा का बोि ही होता है, परन्तु किर भी, सब कुछ होता है। उस नवचारशून्य, कतााशून्य क्षण में, एक ध्वनि सुिाई पड़ती है, वह ध्वनि ओम की ध्वनि से नमलती है- मात्र नमलती है। वह ओम िहीं है; इसीनलए वह मात्र एक संकेत है। हम उसे किर से उत्पन्न िहीं कर सकते। वह 10

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